SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 154] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==== ===== ===== == अथ अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोडश रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 28 अथ स्थापना-अडिल्ल छन्द अचलमेरु के पश्चिम दिशमें जानिये। षोड़सगिर वैताड़ सरस उर आनिये॥ तिनपर श्री जिनभवन विराजत सार जूं। आह्वानन विध करत हरष उर धार जूं // 1 // ___ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोडश रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अब मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनं। कुसुमलता छन्द क्षीरोदध सम उज्वल लेकर, रतन कटोरीमें धर सार। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, जन्मजरामृत रोग निवार॥ अचलमेरु पश्चिम दिश वंदूं, तहां विजयारध षोडस गाय। तिनपर श्रीजिनभवन अकीर्तम, पूजत सुरनर हर्ष बढाय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरु के पश्चिम विदेह सम्बन्धी पद्मा // 1 // सुपद्मा // 2 // महापद्मा॥३॥ पद्मकावती // 4 // सुसंखा // 5 // नलिना॥६॥ कुमदा॥७॥ सरिता // 8 // वप्रा // 9 // सुवप्रा // 10 // महावप्रा // 11 // वप्रकावती॥१२॥ गंधा॥१३॥ सुगंधा // 14 // गंधला // 15 // गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 16 // जलं॥ मलयागिर करपूर सु चंदन, केसर घिसके देत मिलाय। भव आताप हरन जिन चरनन, धार देत उर दाह बुझाय॥ अचलमेरु. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy