________________ 152] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ============== ===== पूरव अचलमेरुकी दिशा, रम्या देश अधिक शुभ वसा। विजयारध गिर शिखर विशेख, अर्घ जजों जिनमंदिर देख॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी रम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 13 // अर्घ॥ पूरव अचल सुरम्या देश, विजयारध तह बीच विशेष। श्री जिनभवन अकीर्तम जाय, अर्घ जजों वसु दर्व मिलाय॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी सुरम्या देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ // पूरव अचलमेरु अभिराम, रमणी देश रमनको ठाम। तहां विजयारध गिरके सीस, अर्घ जजों जिनमंदिर दीस॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी रमणी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // मंगलावती देश प्रधान, अचल मेरुते पूरव जान। रूपाचलपर श्री जिनधाम, अर्घ जजों तजके सब काम॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // अथ जयमाला-दोहा अचलमेरु पूरव दिशा, गिर बैताड विशाल। तिनपर जिनमंदिर जजों, अब वरनूं जयमाल // 27 // पद्धडी छन्द जै अचलमेरुते पूर्व जान, जै षोडश क्षेत्र विदेह मान। जै तीर्थंकर राजै सदीव, चक्रीबल हर प्रतिहर सुजीव॥ जहांमुकतपंथकीचलैचाल, सबजीवसुखीनहीं फिरनकाल। जहां षोडश विजयारधविचित्र,तहां जिनमंदिर षोडशपवित्र //