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________________ [ 38 ] स्थानकपंथी प्राचार्य, साधु आदि छलकपट द्वारा सूत्रों एवं अर्थों में परिवर्तन करते हैं, इसका नूतन उदाहरण यह है कि स्थानकपंथी अखिमेश मुनि द्वारा संकलित, सम्मति ज्ञानपीठ आगरा द्वारा मुद्रित "मंगलवाणी" नामक किताब के नवस्मरण में से "बड़ी शांति" नामक नौवें स्मरण [10 २६७-संस्करण ग्यारहवा ] को मनमानी करके संक्षिप्त कर दिया गया है / "बृहत् शांति" स्तोत्र में से मूर्तिपूजा समर्थक पाठों को आगे-पीछे से निकाल देना एक प्रकार की तस्करवृत्ति ही है / फिर ये लोग एक दिन साहूकार भी बन सकते हैं कि श्वेताम्बरों ने बृहत् शांति स्तोत्र में कुछ पाठ 'प्रक्षेप कर दिया है।" स्थानक पंथियों की इस प्रकार की कुप्रवृत्तियों पर श्वेताम्बर जैन समाज को गंभीरता से विचार करना चाहिए। प्राचार्य हस्तीमलजी पूर्वाचार्यों के नाम देकर उनके प्रति कृतज्ञभाव पूर्वक खंड-१ ( पुरानी प्रावृत्ति ) पृ० 6 पर अपनी बात में लिखते हैं कि xxx उपरोक्त पर्यालोचन के बाद यह कहना किंचित्मान भी अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि हमारा जैन इतिहास बहुत गहरी सुदृढ़ नींव पर खड़ा है / यह इधर उधर की किंबदन्ती या कल्पना के आधार से नहीं पर प्रामाणिक पूर्वाचार्यों की अविरल परम्परा से प्राप्त है / अतः इसकी विश्वसनीयता में लेशमात्र भी शंका की गुंजाइश नहीं रहती। ___ मीमांसा–किन्तु उक्त बात लिखना कपटपूर्ण एवं भोले जनों को भ्रम में डालने हेतु ही है। क्योंकि वृत्ति, चूर्णि, भाष्य और टीकादि शास्त्रों में प्राचार्य हस्तीमलजी स्वयं विश्वास नहीं करते हैं / साथ ही साथ पूर्वाचार्यों के कथन को अप्रमाणिक कहकर पौराणिक किंवदन्ती स्वरूप कल्पना के समर्थक भी यही प्राचार्य हैं। .
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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