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________________ [ 37 ] 888 श्री जैनधर्म प्रचारार्थ श्री महावीरस्वामीजी के निर्वाण के 1242 वर्ष में शैलांगाचार्य ने आचारांग और सूयगडांग की टीका बनाई, 1590 वर्ष पीछे अभयदेवसूरि ने स्थानांग से विपाक पर्यन्त 9 अंग की टीका बनाई, इसके बाद मलयगिरि आचार्य ने राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, पन्नवणा चन्द्र प्रज्ञप्ति, सूर्य प्रज्ञप्ति, व्यवहार और नंदीजी इन 7 सूत्रों की टोका बनाई, चन्द्रसूरिजी ने निरयावली का पंचक को टीका बनाई, ऐसे ही अभयदेव सूरि के शिष्य मल्लधारी हेमचन्द्राचार्य ने अनुयोग द्वार की टोका बनाई, क्षेमकीर्तिजी ने बृहत्कल्प की टीका की, शांतिसूरिजी ने श्री उत्तराध्ययनजी की वृत्ति-टीका. चूणिका-नियुक्ति वगैरह सहित सविस्तार बनाया इन टीकाकारों ने अनेक स्थान मूलसूत्र की अपेक्षा रहीत व वर्तमान में स्वतः की प्रवृत्ति को पुष्ट करने जैसे मनःकल्पित अर्थ भर दिये / 88x मीमांसा-स्थानकमार्गी अमोलक ऋषि में इन टीकाकार महापुरुषों की अपेक्षा ज्ञान का अंश मात्र भी होना असम्भव है, फिर भी इस महाशय ने पूर्वाचार्यों को झूठा करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी है यह अत्यन्त खेद की बात है / यद्यपि अमोलकऋषि द्वारा उनके माने हुए 32 प्रागमों का हिन्दी भाषा में अनुवाद इन पूर्वाचार्यों की टीकादि के सहारे ही किया गया है, ऐसा स्वीकार उसने अपने "शास्त्रोद्धार मीमांसा" नामक पुस्तक में किया है और जिनप्रतिमा एवं जिनमंदिर पर विरोध के कारण सूत्रों के अथ को तो अमोलकऋषि ने ही पलटा है, फिर भी उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली बात सिद्ध करते हैं / उत्सूत्र भाषण को वज्रपाप समझने वाले भवभीरु महोपकारी पूर्वाचार्यों को "मन:कल्पित अर्थ करने वाले" कहना महाकृतघ्नता के सिवाय और क्या है ? "ज्ञानलव दुविदग्धं ब्रह्मापि नरं न रंजयति" इस सूक्ति को अमोलकऋषि चरितार्थ कर गये हैं / किन्तु पूर्वाचार्यों को झूठा करने में साध्वाभास अमोलकजी यह बात सर्वथा भूल ही गये हैं कि फिर उनके कथन को सत्य कौन मानेगा ?
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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