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________________ [ 36 ] सगर चक्रवर्ती के 60 हजार पुत्रों ने अष्टापदजी तीर्थ की रक्षा हेतु जान गंवायी थी ऐसा पूर्वाचार्यों का आगमानुसारी कथन होते हुए भी प्राचार्य खंड-१, पृ० 165 पर पौराणिक किंवदन्ती लिखते हैं कि 88 संभव है, पुराणों में शताश्वमेघी की कामना करनेवाले महाराज सगर के यज्ञाश्व को इन्द्र द्वारा पाताल लोक में कपिलमुनि के पाश बांधने और सगरपुत्रों के वहाँ कोलाहल करने से कपिलऋषि द्वारा भस्मसात् करने की घटना से प्रभावित हों जैनाचार्यों ने ऐसी कथा प्रस्तुते को हो। मीमांसा-देखिये, प्राचार्य हस्तीमलजी जिस डाल पर बैठे हैं उसीके ऊपर कुठाराघात कर रहे हैं / सुनी-सुनाई कल्पित बात लिखने के पीछे प्राचार्य का जैन तीर्थों के प्रति बहुत बड़ा पक्षपात ही सिद्ध होता है / उक्त बात से यह स्पष्ट होता है कि प्रागमेतर प्राचीन साहित्य के रचयिता पूर्वाचार्यों पर प्राचार्य हस्तीमलजी को अविश्वास है। लेकिन दूसरी ओर वे "इन पूर्वाचार्यों ने प्रवचन को सुरक्षित रखा" ऐसो प्रात्मवंचक प्रशंसा भी करते हैं। किन्तु ये पूर्वापर विरोधी बातें उनके अस्थिर चित्त की परिचायक मात्र हैं। खंड-२ पृ० 13 "अपनी बात' में प्राचार्य लिखते हैं कि 80 प्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग के विलुप्त हो जाने के बाद जैन इतिहास को सुरक्षित रखने का श्रेय एक मात्र पूर्वाचार्यों की श्रुतसेवा को है / इस विषय में उन्होंने जो योगदान दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता / आगमाश्रित नियुक्ति, चूणि, भाष्य और टोकादि ग्रन्थों के माध्यम से उन्होंने जो उपकार किया है, वह आज के इतिहास गवेषकों के लिये बड़ा ही सहायक सिद्ध हो रहा है।xxx
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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