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________________ [ 18 ] विशेषणों से श्री कल्पसूत्रशास्त्रकार द्वारा समादर किया गया है, यह बात प्राचार्य को स्वमान्यता विरोधक होने से कांटे की तरह चुभनेवाली है, अतः उन्होंने अप्रमाणिकता पूर्वक श्री कल्पसूत्र शास्त्र कथित 'नमुत्थुणं' का पाठ छिपाया है। किन्हीं जोवों को मिथ्यात्व का उदय ही इतना अभिनिवेश पूर्ण होता है कि वह सत्य को सत्य रूप में लिखने * तक नहीं देता। पूज्य तीर्थंकर प्रत्येक अवस्था में पूजनीय-वंदनीय हैं, इस विषय में भावि तीर्थंकर श्री महावीर भगवान के पूर्व भवधारी मरीचि को प्रथम चक्रवर्ती भरत द्वारा प्रणाम करना शास्त्र प्रसिद्ध दृष्टान्त है / भरत चक्रवर्ती के उत्तर में श्री ऋषभदेव भगवान ने कहा कि-"हे भरत ! तेरा पुत्र मरीचि भावि 24 वा तीर्थकर होगा / तब जाकर भरत ने त्रिदण्डी तापस वेश धारक मरीचि को प्रणाम किया। उक्त बात को खंड 1, पृ० 116 पर प्राचार्य भी व्यक्त करते हैं, यथा xxx मरीचि के पास जाकर उसका अभिवादन करते हुए (भरत) बोले-"मरीचि ! तुम तीर्थकर बनोगे इसलिये तुम्हारा अभिवादन करता हूं। मरीचि ! तेरी इस प्रवज्या को एवं वर्तमान जन्म को वंदन नहीं करता हूँ, किन्तु तुम जो भावी तीर्थंकर बनोगे इसलिये मैं वंदन करता हूँ।"Xxx मीमांसा-भावि तीर्थंकर को भी सम्यग्दृष्टि भरत वंदन करते हैं, इस तथ्य से यह सत्य सिद्ध होता है कि कोहिनूर हीरा भले चाहे खान में पड़ा हो, कोहिनूर ही है / वैसे ही तीर्थंकर परमात्मा भी सदैव वंदनीय एवं पूजनीय हैं / - शास्त्रीय कथन होते हुए भी द्रव्य तीर्थंकर को पूजनीयता में मविश्वास करने वाले प्राचार्य अपनी नाराजगी प्रगट करते हुए कहते हैं कि
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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