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________________ [प्रकरण-४] तीर्थंकरों की माता के गर्भ में भी पूजनीयता जब जगत्वंद्य तीर्थंकर परमात्मा माताकी कुक्षि में आते हैं तब भी पूजनीय होते हैं। वैसे माता की कुक्षि में आये हुए तीथंकर द्रव्य तीर्थंकर हैं, फिर भी वे देवेन्द्रों के भी पूजनीय बनते हैं। तो फिर "देवा वि तं नमसंति" इस आगमवचनानुसार जन सामान्य के भी पूजनीय बनें इसमें आश्चर्य ही क्या ? तीर्थकर परमात्मा माता की कुक्षि में पाते हैं तब देवेन्द्र सिंहासन पर से नीचे उतर जाता है, उत्तरासंग करके अपने सिंहासन से सात-पाठ कदम आगे चलकर भगवान जिस दिशा में हों उसी दिशा में प्रणाम करके भगवान की स्तुति स्वरूप "शक्रस्तव" [नमुत्थुणं] सूत्र बोलता है / उक्त बात श्री कल्पसूत्र शास्त्र में 14 पूर्वधर श्री भद्रबाहुस्वामी ने भी कही है। प्राचार्य हस्तीमलजी खंड 1, पृ० 15 पर लिखते हैं कि xxx सर्व प्रथम उन्होंने ( चौसठ इन्द्रों ने ) सिंहासन से उठ प्रभु जिस दिशा में विराजमान थे उस दिशा में उत्तरासंग किये, सात-आठ कदम आगे जा प्रभु को प्रणाम किया।xxx मीमांसा-श्री कल्पसूत्र शास्त्र में कहा है कि शक्र 'नमुत्थरणं' सूत्र का पाठ बोलता है। फिर भी मनमानी करके प्राचार्य ने शक्रस्तव के कथन को छिपा ही लिया है, क्योंकि माता की कुक्षि में आये हए तीर्थंकर द्रव्य तीर्थंकर हैं, उनको भी प्रादिकर, तीर्थंकर प्रादि 33
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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