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________________ [ 172 ] xxx जंघाचारणस्स गं भंते ! तिरियं केवइए गइ विसए पन्नता ? गोयमा से गं इत्तो एगेणं उप्पाएणं रुअगवरे दीवे समोसरणं करेइ, करइत्ता तहिं चेइआई वंदइ, वंदइत्ता इहमागच्छइ इहमागच्छइत्ता, इह चेइयाई वंबइ, जंघाचारणस्स गोयमा ! तिरियं एवइए गइविसए पन्नता। xx ...... अर्थ-हे भगवन् ! जंघाचारण मुनि का तिरछी गति का विषय कितना है ? हे गौतम ! वह यहाँ से एक उत्पात ( छलांग) में रुचकवर (नामक तेरहवा) द्वीप में समवसरण (विश्राम) करे, करके वहाँ के चैत्य अर्थात् जिनमन्दिर (शाश्वता जिन मंदिर-सिद्धायतन) को वांदे, वांदकर वहां से वापस लौटते दूसरे उत्पात में नन्दीश्वरद्वीप में समवसरण (विश्राम ) करे, विश्राम करके वहाँ के ( शाश्वत जिन ) चैत्य यानी जिन मन्दिर को वांदे, वांदकर यहाँ ( भरत क्षेत्र में ) प्रावे, यहां पाकर यहाँ के (प्रशाश्वत ) जिन चैत्य यानी जिनमंदिर वांदे / हे गौतम ! जंघाचारण मुनि का तिरछीगति का विषय इतना (जानना) है। विद्याचारण मुनि के जिन प्रतिमा वन्दन के विषय में श्री भगवती सूत्र में पाठ है कि 888 विजाचारणस्स ण भन्ते ! तिरियं केवइए गइ विसए पन्नतं ? गोयमा ! सेण इत्तो एगेण उप्पारण माणुसोत्तरे पव्वए समोसरण करेइ, करइत्ता तहिं चेइआई वन्दइ, वन्दइत्ता वीएणं उप्पाएणं गंदिसरवर दीवे समोसरण करेइ करइत्ता तहि चेइआई वन्दइ, वंदइत्ता तओ पडिनियत्तइ इहमागच्छह, इहमागच्छइत्ता इह चेइआई वंदइ। विज्जाचारणस्स ण गोयमा तिरियं एवइए गइ विसए पण्णत्ते / [भगवतीसूत्र, 20 शतक, 9 उद्देश] ...... अर्थ-हे भगवन् ! विद्याचारण मुनि का तिरछी गति का विषय कितना है ? हे गौतम ! वह महाँ से एक उत्पात (उड़ान ) में मानुषोत्तर पर्वत पर समवसरण (विश्राम ) करे, विश्राम करके वहां के
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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