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________________ [ 171 ] . .."श्री उपमिति भव प्रपञ्चा कथा" के कर्ता पूज्य सिद्धर्षि गणि महाराज उक्त श्लोक की टीका करते हैं कि xxx साधूनां मुनीनां चैत्यानां जिनप्रासाद-प्रतिमानां च प्रत्यनीकं क्षुद्रोपद्रवकारिणं तथा अवर्णवादिनं कुवचनभाषकं जिनशासनस्य अहित कारिणं शत्रुभूतं जनं, सः श्रावकः समस्त प्रारणेन स्वकीय सर्व शक्तया, प्राणव्ययेनापि वारयति / शासनोन्नतिकरणस्य महोदय हेतुत्वात् / 88x अर्थ-साधु तथा जिनमन्दिर एवं जिनप्रतिमा को तुच्छ उपद्रव करने वाले और उनका अनादर एवं कुवचन बोलकर अवर्णवाद करने वाले जैन शासन के शत्रुभूत व्यक्तिका जैन श्रावक सर्व सामर्थ्यशक्ति से यावत् प्राणत्याग पूर्वक भी सामना-विरोध करें, क्योंकि शासमोन्नति करने से महोदय होता है। नवम प्रमाण 14 पूर्वधर श्री भद्रबाहु स्वामी महाराज श्री मावश्यक सूत्र में कहते हैं किxxx अकसिण पवत्तगाणं विरया विरयाण एस खलु जुत्तो। संसार पयण करणे दव्वत्थए कूवदिटुंतो॥max अर्थ:-सर्वथा व्रत में प्रवृत्त न हुए विरता-विरति अर्थात् श्रावक को यह ( पुष्पादि से पूजा करण रूप द्रव्यस्तव ) निश्चय ही युक्त-उचित है / संसार को पतला करने में अर्थात् घटाने में-क्षय करने में कूप का दृष्टान्त जानना। 'दशम प्रमाण "जंघाचारण तथा विद्याचारण मुनियों ने जिन प्रतिमा वान्दी है" इस कथन का उल्लेख श्री भगवती सूत्र शतक 20, उद्देश
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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