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________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-४८ प्रजा को मन्दिर में एकत्र करता था। इस सम्मिलन में अन्य गाँवों के लोग भी साक्षी रूप में रहते थे। देवद्रव्य तथा ज्ञानखाते के द्रव्य का उस समय भी आजकल जैसा ही रिवाज था। राता महावीर के प्रसिद्ध मन्दिर की आय के दो भाग देवद्रव्य में जाते थे एवं एक भाग ज्ञानमार्ग में खर्च होता था जिसका निर्णय गुरु अथवा प्राचार्य करते थे। इन द्रव्यों को खाने वालों का भला नहीं होता था। अतः राजा भी इसे दण्डनीय अपराध मानकर इनके दुरुपयोग से बचने का विधान करते थे। मन्दिरों की प्रतिष्ठा के समय न्याय से उत्पन्न धन हो खर्च किया जाता था तभी वह फलदायी होता था। तत्कालीन राजा व सामन्तवर्ग धार्मिक पक्षपात से रहित थे एवं मन्दिर की सुरक्षा तथा संभरण की व्यवस्था करना वे अपना कर्त्तव्य समझते थे / राजा और प्रजा का यह धार्मिक रूप आज भी हस्तिकुण्डी के शिलालेखों के माध्यम से व्यक्त होकर उनकी यशोगाथा को उज्ज्वलतम बना रहा है / 1. शिलालेख सं० 318 श्लोक सं० 15-16 /
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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