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________________ वि. सं. 2008 की प्रतिष्ठा वि.सं. 1053 के पश्चात् मन्दिर के किसी बड़े जीर्णोद्धार के कोई प्रमाण नहीं मिलते। बाद के शिलालेखों से यह ज्ञात होता है कि छोटी-मोटी मरम्मतें तो होती रही होंगी। हस्तिकुण्डी के बहुत से शिलालेख तो इस कदर घिस गए हैं कि उन्हें पढ़ा भी नहीं जा सकता। कतिपय शिलालेख तो काल की अतल गहराई में समा चुके हैं। समय-समय पर महान् आचार्यों ने इस मन्दिर की यात्रा की एवं इसके रख-रखाव की व्यवस्था के लिए उपदेश किया। वि.सं. 1966 तक यह मन्दिर लगभग खण्डहर ही हो गया था। यहाँ तक कि गर्भगृह भी जीर्ण-शीर्ण हो चुका था परन्त पबासन (भगवान के विराजमान होने की पीठिका) को अधर (निराधार) रख कर उसका नवनिर्माण कैसे किया जाए? यह समस्या थी। इस दुष्कर कार्य को पूरा किया आबूरोड के रेलवे ठेकेदार श्री रणछोड़दासजी ने। उन्होंने अपने कौशल एवं बुद्धिबल से पबासन को अधर रख उसके नीचे 21 फुट की नींव खुदवाई। उस समय गर्भ गृह का एक पाट अचानक
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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