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________________ हस्ति कुण्डी का समाज-४७ जनता शृङ्गारप्रिय थी। स्त्रियाँ बहुत शृङ्गार करती थी; वे आभूषणों से लदी रहती थीं। राजा के सदाचारी होने के कारण प्रजा भी सदाचारी थी इसलिए नगरी में स्त्रियों को भी किसी प्रकार का भय नहीं था। स्त्रियाँ शृङ्गार कर देवालयों में नृत्य भी किया करती थीं। समाज के केन्द्रस्थानोंमन्दिरों में गायन-वादन व नृत्य के कार्यक्रम आयोजित होते राज्य की कृषिव्यवस्था बहुत उन्नत थी। कृषि-उपज में अन्न, कपास और गन्ने की प्रचरता थी। गन्ना अधिक होने के कारण यहाँ गन्ना पेलने की घाणियाँ भी थीं। गन्ने की बाड़ियों से गन्ना तोड़ कर खाने की मनाही नहीं थी। गन्ना अत्यन्त सरस और मधुर होता था। सम्भवत: गुड़ बनाने की परम्परा भी रही हो। पहाड़ों से मजीठ और गुग्गुल प्राप्त होते थे। अन्य पर्वतीय सम्पदाओं के दोहन की भी व्यवस्था रही होगी। राजा और प्रजा दोनों के धर्मप्राण होने के कारण इस नगरी में साधु-सन्तों का आवागमन भी निरन्तर होता रहा / प्राचार्यों की प्रेरणा से दानी राजा जनहित के अनेक कार्य करते थे। हस्तिकुण्डी के राजाओं ने अपनी सच्चरित्रता एवं सदाशयता से लगातार पाँच पोढ़ियों तक प्रजा के सामने अनुपम आदर्श स्थापित किया था / शिलालेख सं. 316 के श्लोक सं. 7 से यह ज्ञात होता राजा जब भी कोई आज्ञा प्रसारित करना चाहता था तब वह
SR No.032786
Book TitleHastikundi Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal Patni
PublisherRatamahavir Tirth Samiti
Publication Year1983
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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