SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 842 नैषधमहाकाव्यम् / दधौ रक्षयामासेत्यर्थः, वरणमाल्यप्रदानविषयकप्रवृत्तिनिवृत्तिविषये कर्त्तव्यविमूढा आसीदिति भावः / एतेनास्या मध्यमानायिकात्वमुक्तम् ; 'तुल्यलज्जास्मरा मध्या' इति लक्षणात् // 23 // इस ( देवोंकी प्रसन्नतासे नलका निश्चय हो जाने ) के बाद कामदेवने उस वरणमाला को नल में पहनाने के लिए प्रेरित किया और लज्जाने उसे मना किया अर्थात् कामवशीभूत दमयन्तीने नलको वरणमाला पहनाना चाहा, किन्तु 'इतने लोगों के सामने मैं नलको माला कैसे पहनाऊँ ?' इस भावसे उत्पन्न लज्जाके कारण वह रुक गयी। इस कारणसे उस ( दमयन्ती) ने दोनों ( कामदेव तथा लज्जा) के अनुरोधको समानभावसे धारण किया अर्थात् भाव-सन्धिके वशीभूत दमयन्ती नलको माला पहनाने तथा नहीं पहनानेमें दोलायित चित्तवाली हुई। [ समान एवं परस्पर विरु द्र दो कार्योंके आनेपर मनुष्य दोलायित चित्त होकर उनमें से एक कार्य भी नहीं करता, अपि तु सन्देह में पड़कर तटस्थ बन जाता है, वैसा ही इस दमयन्तीने भी किया ] // 23 // स्रजा समालिङ्गयितुं प्रियं सा रसादधत्तैव बहुप्रयत्नम् / स्तम्भत्रपाभ्यामभवत्तदीये स्पन्दस्तु मन्दोऽपि न पाणिपद्मे // 24 // सजेति / सा भैमी, रसात् रागात् , प्रियं नलं, सृज्यते इति स्रक वरणमाला, 'ऋस्विग्दरक-' इत्यादिना क्विन् अमागमश्च / तया समालिङ्गयितुं समाश्लेष. यितु, बहुप्रयत्नं महोद्योगमेव, अधत्त, तु किन्तु, तदीये तस्याः सम्बन्धिनि, पाणि. पद्म स्तम्भः निष्क्रियत्वलक्षणः सात्विकभावविशेषः, स च त्रपा च ताभ्यां हेतुभ्यां, मन्दः अल्पोऽपि, स्पन्दः कम्पनव्यापारः, न अभवत् // 24 // उस ( दमयन्ती) ने अनुरागसे वरणमालासे प्रियको आलिङ्गित कराने अर्थात् नलको वरणमाला पहनाने के लिए बहुत उद्योग किया ही, उसके हस्त-कमलमें स्तम्भ ( 'जड़ता' नामक सात्त्विक भाव ) तथा लज्जासे थोड़ा भी स्पन्दन नहीं हुआ अर्थात् जड़ता तथा लज्जासे अभिभूत दमयन्तीके हाथ थोड़ा भी नहीं हिले ( माला डालने के लिये आगे नहीं बढ़े ) कि वह माला नलके गले में पहना सके / / 24 / / तस्या हृदि ब्रीडमनोभवाभ्यां दोलाविलासं समवाप्यमाने / श्रितं धृतणाङ्ककुलातपत्रे शृङ्गारमालिङ्गदधीश्वरश्रीः / / 5 / / तस्या इति / बीडमनोभवाभ्यां लज्जास्मराभ्यां,दोलाविलासं प्रेक्षणलीलां, सम. वाप्यमाने नीयमाने, वरणविषये प्रवृत्तिनिवृत्तिसंघर्षेण दोदुल्यमाने इत्यर्थः, एणाङ्ककुलं सोमवंशः, सोमवंशोत्पन्नः नल इति यावत् , तदेव आतपत्रं छत्त्रं, नलाप्राप्तिज. नितसन्तापप्रशमकत्वादिति भावः, . धृतम् एणाङ्ककुलातपत्रं येन तस्मिन् सन्तापनिवारकनलरूपातपत्रवति, तस्याः दमयन्त्याः, हृदि हृदये, भितम् आश्रित्य स्थितं, 1. 'स्थितम्' इति पाठान्तरम। .....
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy