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________________ एकादशः सर्गः। 653 लक्ष्मीलतासमवलम्बभुजद्रुमेऽपि वाग्देवताऽऽयतनमञ्जमुखाम्बुजेऽपि / साऽमुत्र दूषणमजीगणदेकमेव नार्थीबभूव मघवा यदमुण्य देवः // 46 // ___ लक्ष्मीलतेति / लघमीरेव लता तस्याः समबलम्बः आधारभूतः, भुज एव दुमो वस्य तस्मिनपि, भुजार्जितसम्पपीत्यर्थः, तथा वाग्देवतायाः सरस्वत्याः, आयतनं स्थानं, मञ्ज मनोज्ञं. मुखाम्बुजं यस्य तस्मिन् अपि, चतुःषष्टिकलाऽभिज्ञेऽपि, लक्ष्मीसरस्वत्योरेकाधिकरणेऽपीति भावः, अमुत्र अमुष्मिन् हव्ये राज्ञि, सा भैमी, एक. मेव दूषणम् अजीगणत् गणयामास, गणेौँ चङ'ई च गणः' इत्यभ्यासस्येकारः, किं दूषणम् ? तदाह-अमुष्य हव्यस्य राज्ञः, देवो मघवा महेन्द्रः, यत् अर्थी याचकः, न बभूव; किन्तु नलस्य यद् दूत्यं ययाचे तत् कथं नलात् हीनमेनं स्वीकरिप्यामि इति भावः // 46 // ___ उस ( दमयन्ती ) ने लक्ष्मीरूपिणी लताके आश्रयभूत बाहुरूपी वृक्षवाले भी तथा सरस्वती देवीके निवासभूत मनोहर मुख कमलवाले भी इस ( 'हव्य' नामक राजा) में एक ही दोष गिना ( समझा) कि इन्द्रदेव इसका याचक नहीं बने ( अत एव उसका वरण नहीं किया)। [यद्यपि यह 'हव्य' राजा वीरलक्ष्मी से युक्त बाहुवाला, विद्वान् तथा सुन्दर मुखकमलवाला है, किन्तु नलके तो इन्द्रदेव याचक बने थे अर्थात् मेरे यहां व्रत बनने के लिये नलसे इन्द्रने याचना की थी और इसके नहीं अतः इस 'हव्य' राजा तथा नल में बहुत अन्तर है, इस कारण इसका वरण करना ठीक नहीं है, यह विचार कर दमयन्तीने उसका वरण नहीं किया ] / / 46 // लक्ष्मीविलासवसतेः सुमनासु मुख्यादस्माद् विकृष्य भुवि लब्धगुणप्रसिद्धिम् / स्थानान्तरं तदनु निन्युरिमां विमान वाहाः पुनः सुरभितामिव गन्धवाहाः // 47 // लक्ष्मीविलासेति / तदनु तत्परिहारानन्तरं विमानवाहाः भुवि लोके, लब्धा गुणेन सौन्दर्यादिना, अन्यत्र-घ्राणतर्पणेन च, प्रसिद्धिः यया ताम् , इमो तां दमयन्ती गन्धवाहाः वायवः, सुरभितां सौरभसम्पदमिव, लचम्याः सम्पदः, अन्यत्र--पद्माया:, विलासवसतेः लीलागृहात् , सुमनःसु विद्वत्सु, अन्यत्र-पुष्पेषु मुख्यात् अस्मात् नृपात् , पनाच्च विकृण्य, अपनीय, पुनः स्थानान्तरं राजान्तरम् , अन्यत्र-पुष्पान्तरं, निन्युः॥४७॥ इस [ दमयन्तीके द्वारा 'हव्य' राजाका वरण नहीं करने ) के बाद विमानवाहकों ने शोभा ( या श्री) के निवास स्थान तथा विद्वानोंमें प्रधान इस ('हव्य' नामक राजा) से सौन्दर्य आदि गुणोंसे प्रसिद्ध इस ( दमयन्ती) को फिर हटाकर उस प्रकार दूसरे स्थानमें ले गये, जिस प्रकार वायु फूलों में प्रधान लक्ष्मीके निवास भवन ( लक्ष्मी का कमलमें निवास
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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