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________________ भूमिका नायं नलः खलु तवास्ति महानलाभो यद्येनमुज्झसि वरः कतरः परस्ते // (13333) इस एक ही श्लोकसे पवनलों के वर्णन में तो ऐसा प्रतीत होता है कि सचमुच हो स्वयंवर में स्वयं पधारकर साक्षात सरस्वती देवीने या राजवर्णन किया है। महाकविने स्वयंवर में आयी हुई सरस्वती देवी के प्रसङ्ग का जो वर्णन ( 1074-78 ) किया है, उसमें उनका बहुश्रुतत्व स्पष्ट प्रतिमासित होता है। क्षागे चलकर बारातका वर्णन मी महाकविने सूक्ष्मदर्शनपूर्वक बड़ा रोचक किया है। वर्तमान समयमें भी साधारण कोटिके लोगों की बारात बारातियों की भोरसे जो शान दिखलायी जाती है, बात-बातमें हँसी मजाक चलता है उससे समी परिचित है, तो फिर परमैश्वर्यशाली नैषधकी बारातमें जिसमें नट, विट, विदूषक आदि दास्योपजीवियोंसे लेकर बड़े-बड़े चतुर राजगण मी सम्मिलित हुए थे, उसमें हास तथा शनशौकत की क्यों कमी होती ? कन्याके पिता मोम बार-बार आप्त राजाओंको यथासमय शुभ मुहूर्तमें शीन कार्य होने के लिए दूतरूपमें भेजते है, किन्तु पारातियों का मानो उपर ध्यान ही नहीं नाता, वे अपने शानमें मस्त होकर धीरे-धीरे चल रहे है, तथा भनेक बार दूतरूपमें मोमप्रेषित आप्त राजाओं तथा उनके सहचारों से नलकी सेना बहुत बढ़ गयी / यथा 'विदर्भराजः चितिपाननुक्षणं शुभषणासनतरवसत्वरः। दिदेश दुतान् पथि यान्यथोत्तरं चमूममुग्योपचिकाय तथयः॥ (15) जब सामान्य वर्गके मी कन्यापिता भादि पारातियों के मादर सस्कार एवं मोजमादि में यथासम्भव किसी प्रकार की कमी नहीं होने देते, तब मला कुण्डिनपुरापीश राजा मीमके यहाँ नल-जैसे वरके बारातियों के भोजनादिमें किस वस्तुको कमी थी तथा ऐसे वर्णनकी उपेक्षा मी महाकवि श्रीहर्षको कैसे सा हो सकती थी। बारातियों को विविध भोज्यपदार्थोके वर्णन-प्रसङ्ग में कल्पना विचक्षण श्रीहर्ष घी के विषयमें कहते है कि-यद्यपि मर्त्यलोकवासियोंने अमृतपान नहीं किया है, तथापि वी अमृतसे अधिक स्वादिष्ट है ऐसा अनुमान होता है; क्योंकि भमृतभोजी यशों में जले (दूषित ) हुए गन्धवाले भी जिस घोको लालसा करते हैं / यथा'यदष्यपीता वसुधालयः सुधा तदप्यदः स्वादु ततोऽनुमीयते / अपि तूपर्बुधदग्धगन्धिने स्पृहां पदस्मै दधते सुधाम्धसः // ' (1671 ) वाह ! क्या ही सुन्दर हृदयहारिणी कल्पना है, यहाँ गागरमें सागर ही भर दिया गया है। परिहासप्रियतामैं पहले लिख चुका हूँ कि बारातियों के बात-बातमें परिहासपूर्ण व्यवहार देखे जाते हैं, उसे यहाँपर कविने दमयन्मोके भाई दम अर्थात नलके मेटे साके द्वारा नाना प्रकारसे कराया है। और इतना ही नहीं, राजाओंसे मरी स्वयंवर सभामें भी दमयन्ती-दासियों के द्वारा दमयन्ती-निरस्त राजाओंको लक्ष्यकर कसा उपहास कराया है, देखिये ! सरस्वतोदेवी स्वयंवरमें आये हुए राजाभोंका परिचय दे रही है, उसी प्रसङ्गमें
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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