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________________ द्वितीयः सर्गः अवश्त्येति / अहमिमान्दमयन्ती दिवः स्वर्गस्य सम्बन्धिभियौंवतैर्युवतिसमूहैरपि 'गार्मिणं यौवनं गण' इत्यमरः / भिक्षादित्वात्समूहार्थे अण्प्रत्ययः, तत्राप्यस्य युवतीति स्त्रीप्रत्यान्तस्यैव प्रकृतित्वेन तद्ग्रहणात् तत्सामर्थ्यादेव 'भस्याढे तद्धित' इति पुंवद्भाव इति वृत्तिकारः। न सहाधीतवतीमसदृशीं ततोऽप्यधिकसुन्दरीमित्यर्थः / 'नजर्थस्य न शब्दस्य सुप्सुपेति समास' इति वामनः। अवश्त्य निश्चित्य विधातुः ब्रह्मणः आशये हृदि अस्याः पतिः कतमो नु कतमो वा वसतीत्यचिन्तयम्, तदेवेति शेषः॥ 41 // स्वर्गके भी युवती-समूहोंके साथ अध्ययन नहीं की हुई ( स्वर्गीय युवतियोंसे भी अधिक सुन्दरी ) इस ( दमयन्ती ) को निश्चितकर 'ब्रह्माके मन में इसका कौन पति बसता है ?' यह मैंने विचार किया। [ समान गुणवालोंके साथ अध्ययन किया जाता है, असमान गुणवालोंके साथ नहीं; अतएव मानुषी स्त्रियों की कौन कहे, स्वर्गीय युवतियोंसे भी अधिक गुणवाली होनेसे दमयन्तीने उनके साथ भी अध्ययन नहीं किया है अर्थात् स्वर्गीय युवतियोंसे भी दमयन्ती अधिक सुन्दरी है ऐसा निश्चय कर ब्रह्माके मन में इसका कौन पति बसता है यह मैने सोचा ] // 41 // अनुरूपमिमं निरूपयन्नथ सर्वेष्वपि पूर्वपक्षताम् / युवसु व्यपनेतुभक्षमस्त्वयि सिद्धान्ताधयं न्यवेशयम् / / 42 // अनुरूपमिति / यथेदानीमनुरूपं योग्यं त्वां निरूपयन् तस्याः पतित्वेनालोचयन् सर्वेष्वपि युवसु पूर्वपक्षतां दूष्यकोटित्वं व्यपनेतुमक्षमः सन् त्वयि सिद्धान्तधियं न्यवेशयम् / त्वमेवास्याः पतिरिति निरचैषमित्यर्थः / अयमेव विधातुरप्याशय इति भावः॥ 42 // (इस दमयन्तीके ) अनुरूप पतिका निरूपण करता हुआ सब युवकोंमें पूर्वपक्षत्वको दूर करनेमें असमर्थ मैंने तुममें ही सिद्धान्त बुद्धिको स्थापित किया। [ पूर्वपक्षकी अपेक्षा सिद्धान्त पक्षके प्रबल होनेसे 'आप ही इस दमयन्तीके अनुरूप पति हैं। ऐसा मैंने निश्चय किया ] // 42 // अनया तव रूपसीमया कृतसंस्कारविबोधनस्य मे | चिरमध्यवलोकिताऽद्य सा स्मृतिमारूढवती शुचिस्मिता / / 4 / / ___ अथ त्वद्रूपदर्शनमेव सम्प्रति तत्स्मारकमित्याह-अनयेति / चिरमवलोकिताऽपि सा शुचिस्मिता सुन्दरी अद्याधुना हस्तेन निर्दिशन्नाह-अनया तव रूपसीमया सौन्दर्यकाष्ठया कृतसंस्कारविबोधनस्य उबुद्धसंस्कारस्य मे स्मृतिमारूढवती स्मृतिपथङ्गता, सदृशदर्शनं स्मारकमित्यर्थः // 43 // तुम्हारी इस रूपमर्यादा ( सर्वाधिक सौन्दर्य ) से उबुद्ध संस्कारवाले मेरे स्मृतिपथमें बहुत पहले भी देखी गयी वह उज्ज्वल मुसकानवाली सुन्दरी (दमयन्ती) आ गयी /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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