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________________ देवता इम वात करतां ते मुनिराजनें श्रुकल ध्याननें जोगे केवलज्ञान उपमुं। अंतगड केवली थई कंड्रमुनिजी सिध वरया। नमोनमः श्री विमलगिरि, मुक्तिगिरीजी न(मस्कार करूं छु। एहवें जुनागढनो राजा प्रभुने वांदीने इंद्रनी जोडें बेठो, तेहवें सौधर्मा गणधरजीइं श्रीसिधाचलजीनो महात्म पुछयो। तिवारें श्री वीर कहे छे, "आ राजा बेट्टो छे, एहना वंसने विषं माहाकोढिओ महिपाल एहवें नामें राजा थासें। ते राजानें कोढि रोगें सरिर गंधासे। जे नगरमा रह न जाइं। गाम बाहिर रहेंस्यें। रात जासें तो दिवस नहें जायं। कोढनी अस्याध्य वेदना भोगवतो रहेस्यें। चैत्रीनो अट्ठाई महोछव करवाने घणा विद्याधरो, घणी विद्याधरीओ सेंत्रुजाने विषं आव्या झें / ते ठेकाणे पोतपोतानी दीसें जाई छ। तिहां एक विद्या(ध)री भरतारनें कहें छे, "स्वामी! आपण बिहं सुर्यकुंडमां नाहिं ऋषभने पुजी पछे आपण घरें जइसं, जे जाय तेहने जावा द्यो।" ते सांभलीने विद्याधर विद्याधरणी सर्यकंडमां नाही, पूजा करी सांतिकलस जलें भरी विमानमां मेली, तिहांथी बे जणां चाल्या। मागें आवतां महिपाल राजा कोढे रोगें महा आक्रंद करें छ। ते देखि विद्याधरीने करुणा आवि। "स्वामि! आ कुण कोढियो टलवलें छे?" तिवारे विद्याधर कहे छे, "हे स्त्री! महिपाल नामें कोढियो राजा छे। पूर्व कृत कर्म उदये आव्यां छ।" तिवारें विद्याधरीइं पूछ। जे ए रोगनो एक उपाय छेः। "श्री सिधाचलजी उपरें सूर्यवनमा सुर्यकुंड छे ते कुंडना पाणिना बिंदुनो फरस थाय तो रोग जायें", एहवू मुनीराजना मुखथी सांभलुं छे। ते कुंडना पाणि वीद्या वात सांभलीने विद्याधरी हर्ष धरती कलसथी सांतिजल हाथमां लेइ राजाना सरिरें छांटा नाख्या। एतलें अढार जातना कोढ निकलता केहवा लागा, "अरे राजा! अमारे ताहरें सात भवनो वेर हतो। हवें अमारो जोरो थाको। अमथी हवे रेहवाय नहीं। एतला माटे हवे अमे जई इं छे।" इंम केहता थका रोग अदृस्थ थयो। राजा नीरोगी थयो। प्रभाते हर्ष, वधामणां, उछव घणां थया। एहवें चारण मुनि आव्या। आहार पडिलाभी रोगनुं कारण पुडूं, तिवारें मुनि कहें, "पाछले सातमें भवे ते मुनीनो घात करयो हतो। ते पाप धोतां धोता कांइक रह्यु हतुं, तेथी कोढि रोग उपनो।" ते वात सांभलि राजाने जातिसमरण उपमुं। पुरव भव दीट्ठो। तिवारें चतुर्विध संघ लेइनें राजा श्रीसिधाचलजी आव्यां। तिहां अट्ठाइ महोछव करी चारित्रा लेइ अणसण करीनें सीधीने वऱ्या। नमोनमो श्री सिधाचलजी। श्री विमलाचलजी। तिहां सोधर्मइंद्रे श्री शेजेजी नदीनो महिमा पुछयो। तिवारें श्री वीरें नदीनो महिमा मोटो वर्णव्यो छे / ए नदिमां जे नाहें ते थाई भव्यजी(व) भवसंसार थोडो करें। तिहां तिर्थे उधार किणे-किणे कर्यो, ते कहें छं। प्रथम उधार भरत चक्रवर्तीनो, बीजो उधार दंडवीर्जनो, त्रिजो इसान इंद्रनो, चोथो माहेंद्रनो, पांचमो ब्रह्मन्द्रनो, छट्ठो भुवनपतीनो, सातमो सगरचक्रीनो, आठमों व्यंत्रइद्रनो, नवमो चंद्रजसानो, दसमो चक्राबुधनो, इग्यारमो रामचंद्रनो, बारमो 5 पांडवनो, तेरमो जावड-भावडनो, चौदमो बाहडदे मंत्रीनो, पनरमो समरासारंगनो, सोलमो कर्मासानो, सत्तरमो उद्धार दुपसाह आचार्यना उपदेसथी वीमलवाहन राजा करावस्यें। 171 ए सत्तर तो मोटा। बीजा नाहनानी संख्या नहीं। 92 पटदर्शन
SR No.032780
Book TitlePat Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalpana K Sheth, Nalini Balbir
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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