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________________ "भाई ! मेरी तो यह धारणा है कि पीड़ित प्राणियों को दुःख से मुक्त करके उन्हें शान्ति प्रदान करने से जो सुख मिलता है, वह मनुष्यों को स्वर्गलोक अथवा ब्रह्मलोक में भी नहीं प्राप्त होता / यदि मेरे समीप रहने से इन दुखी जीवों की नरक-यातना का कष्ट कम होता है तो मैं सूखे काष्ठ के समान अचल हो कर यहीं रहूँगा।" इतने में धर्मराज और देवराज भी वहां उपस्थित होकर स्वर्गलोक चलने के लिये राजा से अनुरोध करने लगे। राजा ने कहा-"यदि मेरे सन्निधान से इन नारकीय जीवों का उद्धार न होगा तो इन्हें मेरे सम्पर्क की स्पृहा क्यों होगी ? इसलिये मेरी यह इच्छा है कि मैंने आजतक जो कुछ सुकृत सञ्चित किया है उसके प्रभाव से ये दीन-दुःखी जीव नरक से उद्धार प्राप्त करें / " राजा के इस असाधारण अपूर्व त्याग से उनका सुकृत अनन्त गुना घढ़ गया और उसके प्रभाव से वहाँ के सभी प्राणी नरक-यातना से मुक्त हो अपने-अपने कर्मों के अनुसार भिन्न भिन्न उत्तम योनियों में चले गये और राजा को स्वयं भगवान् विष्णु विमान में बिठा कर अपने दिव्य धाम में ले गये / इस अध्याय के ये श्लोक संग्राह्य हैं न स्वर्गे ब्रह्मलोके वा तत्सुखं प्राप्यते नरैः / यदातजन्तुनिर्वाणदानोत्थमिति मे मतिः // 56 / / धिक तस्य जीवनं पुंसः शरणार्थिनमातुरम् / यो नार्त्तमनुगृह्णाति वैरिपक्षमपि ध्रुवम् // 60 / / यज्ञदानतपांसीह परत्र च न भूतये / भवन्ति तस्य यस्यातपरित्राणे न मानसम् // 61 / / नरस्य यस्य कठिनं मनो बालातुरादिषु / वृद्धेषु च न तं मन्ये मानुषं राक्षसो हि सः // 62 // मेरा मत है कि मनुष्य किसी आर्त प्राणी को पीडा से मुक्त कर जो सुख प्राप्त करता है वह उसे स्वर्गलोक अथवा ब्रह्मलोक में भी नहीं प्राप्त होता // 56 // उस मनुष्य के जीवन को धिक्कार है जो शरण में आये आर्त आतुर पर, चाहे, वह शत्रुपक्ष का ही क्यों न हो, अनुग्रह नहीं करता // 60 // जिस मनुष्य का चित्त श्रात. की रक्षा के लिये उत्साहित नहीं होता उसके यज्ञ, दान और तप इस लोक अथवा परलोक में कहीं भी कल्याणकारक नहीं होते // 6 // जिस मनुष्य का चित्त बालक, आतुर और वृद्धों के प्रति कठोर होता है, मैं उसे मनुष्य नहीं मानता, वह तो निश्चय ही राक्षस है // 62 // - -
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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