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________________ ( 62 ) सोलहवां अध्याय इस अध्याय में सुमति ने अपने पिता को महायोगी दत्तात्रेय द्वारा राजा अलर्क के प्रति किये गये योगोपदेश को सुनाने की प्रस्तावना करते हुये उग दोनों का परिचय देने के प्रसङ्ग में एक पतिव्रता नारी के उत्तम कथानक का वर्णन किया है जिससे पातिव्रत्य की अलौकिक महिमा का मूर्त अभिव्यंजन होता है / कथानक इस प्रकार है प्राचीन समय में एक कौशिक नाम का ब्राह्मण था / वह अपने पूर्व पापों के कारण कोढ़ी हो गया था / वह नितान्त निष्ठुर और क्रोधी था तथा प्रतिक्षण अपनी पत्नी को डांटता-फटकारता रहता था / पर उसकी पत्नी इतनी साध्वी, विनीता और पतिव्रता थी कि वह अपने उस कोढ़ी, निकम्मे तथा कर पति को ही अपना परमेश्वर मानकर उसका पूजन करती थी एवं उसके किसी भी दुर्वचन या दुर्व्यवहार से किञ्चिन्मात्र भी अपरक्त न होकर उसकी सर्वविध सेवा में सर्वतोभावेन संलग्न रहा करती थी। एक दिन वह पतिपरायणा देवी पति की प्राज्ञा से उसे कन्धे पर बिठाकर एक वेश्या के घर ले जा रही थी। रात्रि का समय था। मार्ग में एक सूली थी जिस पर चोरी के सन्देह से माण्डव्य नामक निरपराध ब्राह्यण चढ़ा दिया गया था / अँधेरे के कारण दिखाई न पड़ने से कोढ़ी के पैर से आहत हो सूली हिल गयी जिससे ब्राह्मण को बड़ा कष्ट हुअा। ब्राह्मण ने क्रोध में श्राकर शाप दिया कि जिसके कारण सूली हिलने से मुझे दुःख हुअा है वह सूर्योदय होते ही मर जायगा / इस पर उस पतिव्रता ने अपने पातिव्रत्य के बल से सूर्य का उदय ही रोक दिया। इससे जनता में बड़ा हाहाकार मच गया। स्नान, दान अग्निहोत्र आदि सारी क्रियायें बन्द हो गई। इस घटना से भयभीत होकर देवगण ब्रह्मा जी के पास गये। ब्रह्मा जी ने उन्हें अत्रि की पत्नी सतीशिरोमणि अनसूयाजी के पास भेजा / अनसूयाजी ने उन्हें आश्वासन देकर उस पतिव्रता ब्राह्मणी के पास जा उसे समझाया कि "देखों बहिन ! यदि सूर्य का उदय न होगा तो सारे संसार का उच्छेद हो जायगा / इसलिये तुम दया कर सूर्य का उदय होने दो जिससे जगत् के सारे कार्य यथावत् हो सकें। रही तुम्हारे पति की बात, सो तुम विश्वास मानो कि मैं अपने अखण्ड पातिव्रत्य के बल से उन्हें पुनर्जीवित कर तरुण और स्वस्थ शरीर प्रदान करूँगी।" ब्राह्मणी ने अनसूया जी की बात मान ली / सूर्योदय को रोक रखने का संकल्प छोड़ दिया। फलतः सद्यः सूर्योदय हो गया और तत्काल ही ब्राह्मण की मृत्यु हो गयी / अनसूयाजी ने उसी समय यह संकल्प किया कि ब्राह्मण नीरोग, तरुण एवं स्वस्थ शरीर पाकर अपनी पत्नी के साथ सौ वर्ष तक जीवित रहे / फिर क्या था / सती अन
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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