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________________ विभूति, श्री और ऊर्क से सम्पन्न सत्व चिदात्मा ईश्वर का तेजोमय अंश होता है। पुराणों का विषयमूलक विभाग इस प्रकार उपर्युक्त रीति से संक्षेप से सूचित आत्मा के अठारह स्वरूपों का प्रतिपादक होने से ही पुराणों की संख्या अठारह है। विवेच्य विषय की दृष्टि से इनके चार विभाग होते हैं। प्रथम विभाग में ब्रह्म, पद्म, विष्णु, वायु और नारद ये छः पुराण समाविष्ट हैं। इन पुराणों में आधिदैविक सृष्टि का प्रतिपादन करते हुये कहा गया है कि सृष्टि की रचना ब्रह्मा से हुई है। ब्रह्मा की उत्पत्ति पद्म से हुई है। पद्म विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुआ है, विष्णु वायुमय शेष पर स्थित है, शेष समुद्र में स्थित है और समुद्र नारद-जलोत्पादक तत्व से उद्भूत है। यहाँ ब्रह्म का अर्थ है अग्नितत्त्व, पद्म का अर्थ है पृथ्वीपिण्ड, विष्णुनाभि का अर्थ है सूर्य, शेष का अर्थ है विश्वव्यापी वायु, वायु का अर्थ है अप्समूह जिसे सरस्वान् भी कहा जाता है। वह अप्समूहरूप समुद्र जिस अप्तत्व से पैदा होता है वही नारद कहा जाता है / द्वितीय विभाग में मार्कण्डेय, अग्नि, भविष्य और ब्रह्मवैवर्त ये चार पुराण सन्निविष्ट हैं। इन पुराणों में आध्यात्मिक सृष्टि का प्रतिपादन किया गया है। मार्कण्डेय पुराण में प्रकृति को, अग्नि पुराण में सूर्य को, और ब्रह्मवैवर्त में ब्रह्म को जगत् का उपादान कारण बताया गया है। - तृतीय विभाग में लिङ्ग, वराह, स्कन्द, वामन, कूर्म और मत्स्य इन छ: पुराणों का समावेश होता है / इनमें सृष्टि के अवान्तर कारणों का प्रतिपादन किया गया है। लिङ्ग पुराण के अनुसार सृष्टि का एक कारण लिङ्ग है, 'लयं गच्छति अस्मिन्' इस व्युत्पत्ति के अनुसार लिङ्ग का अर्थ वह अक्षरतत्व है जिसमें प्रलयदशा में विश्व का लय होता है। वराह पुराण के अनुसार सृष्टि का एक कारण वराह है, वराह का तात्पर्य उस वायु से है जो अक्षरलिङ्ग से उत्पन्न होने वाले क्षरसमूह को वेष्टित कर उन्हें पिण्ड का रूप प्रदान करता है। स्कन्द पुराण के अनुसार सृष्टि का एक कारण स्कन्द है। स्कन्द से वह अग्नि अभिप्रेत है जो पृथ्वी आदि क्षरपिण्डों को बाँधे रहता है जिसके कारण वे असमय में विशीर्ण नहीं होने पाते / वामन पुराण के अनुसार सृष्टि का एक कारण वामन है, इस कारण के द्वारा पृथ्वी, अन्तरिक्ष और द्युलोक का परस्पर समन्वय स्थापित होता है / कूर्म पुराण के अनुसार सृष्टि का एक कारण कूर्म है / पृथ्वी, अन्तरिक्ष और द्यु इन तीनों लोकों को जीवित रखने वाले महाप्राण का नाम कूर्म है / उसे कश्यप भी कहा जाता है और उसी के कारण समस्त प्रजा काश्यपी कही जाती है। मत्स्य पुराण
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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