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________________ के अनुसार सृष्टि का एक कारण मत्स्य है। यह मत्स्य भी एक प्रकार का प्राण है जो विश्व के मध्य में केन्द्रित हो एक ओर विषुवद् वृत्त से उत्तर ध्रुव तक तथा दूसरी ओर विषुवद् वृत्त से दक्षिण ध्रुव तक परिभ्रमण करता हुआ सम्पूर्ण भौतिक सृष्टि की उत्पत्ति का निदान होता है। चतुर्थ विभाग में गरुड और ब्रह्माण्ड इन दो पुराणों का समावेश है, गरुड पुराण में सृष्टि विरोधी प्रतिसृष्टि का प्रतिपादन किया गया है, प्रति सृष्टि के कई अर्थ हैं। जैसे सृष्टि क्रम के प्रतिकूल विनाश क्रम, जन्मक्रम के विरुद्ध निर्वाणक्रम तथा बहुभवन के विरुद्ध आत्मा का पुनः एकीभवन / प्रतिसृष्टि के इन सभी प्रकारों का वर्णन इस पुराण में किया गया है। गरुड को वेदों में सुपर्ण कहा गया है। 'सुष्टु पतति विभिन्नेषु लोकेषु गच्छति' इस व्युत्पत्ति के अनुसार कर्मात्मा जीव ही सुपर्ण है, कर्मानुसार नाना लोकों में उसकी विभिन्न गतियों का निरूपण भी इस पुराण में किया गया है। ब्रह्माण्ड पुराण में उस आधारभूत पदार्थ का, जिसमें विश्व की सृष्टि और प्रतिसृष्टि का चक्र चलता है, निरूपण किया गया है। उस पदार्थ का नाम ब्रह्माण्ड है। वही इस पुराण का मुख्य प्रतिपाद्य है। इस प्रकार अठारहों पुराणों में सृष्टि, प्रतिसृष्टि आदि के द्वारा उस पुराण पुरुष परमात्मा का साकल्येन वर्णन किया गया है जो सारी सृष्टि के जन्म, जीवन और संहार का केन्द्र-बिन्दु है और जिसमें अपने आपको विलीन कर देना ही मनुष्य जीवन की अन्तिम सफलता है। पुराणों की रचना कब और कैसे हुई ? -पुराण-विद्या वेद-विद्या के समान अनादि है और पौराणिक वाङ्मय वैदिक वाङ्मय के समान सर्व-प्रथम ब्रह्मा से ही प्रादुर्भूत हुआ है। अन्तर केवल यह है कि वैदिक वाङ्मय की प्रथम उपलब्धि जिस रूप में हुई, बाद में भी उस रूप की ज्यों की त्यों रक्षा की गई। उसकी पदावली में किसी प्रकार के परिवर्तन को अग्राह्य माना गया, वह जिस रूप में पहली बार सुना गया उसी रूप में बाद में भी बराबर कहा सुना जाता रहा। इसी लिये उसका दूसरा नाम अनुश्रव अथवा श्रुति पड़ा, पर पौराणिक वाङ्मय के सम्बन्ध में यह बात नहीं है, पुराणों की रक्षा शब्दों में नहीं अपितु अर्थों में की गई, उनकी भाषा बदलती रही पर अर्थ वही रहा। ब्रह्मा के मुख से निकली पुराणवाणी का जो अर्थ था वही आज की पुराण-भाषा में भी निहित है। इस प्रकार वेद जो कुछ उपलब्ध हैं अपने आदिम शब्द और अर्थ दोनों रूपों में ज्यों के त्यों आज भी सुरक्षित हैं, पर पुराण केवल अपने मौलिक अर्थों में ही सुरक्षित हैं। पुराणों के विषय में इस सम्भावना
SR No.032744
Book TitleMarkandeya Puran Ek Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadrinath Shukla
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1962
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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