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________________ ११० श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. धर्मरुची बहु गुण जर्या ॥ धर्मरुची मुनिवर मास पारणे नाग सिरी घर यावए, ककूंचं तुंबुं पां मियाहारी सव सिद्धि सुख पाव ॥ १ ॥ नाग सिरिरे महामुनिवरना घातथी, हेली लोके रे रोगे पमी पापथी । पहुतो छडी रे मह मरीनें सातमी; एम साते रे नरके फिरी बहु पुखखमी:-खमी वेदन पुढवि मह कह, जाव काल अत, बहु दाह पीमी जमत जमतां, जरतखेत्र विदित ॥ तिहां नयरि चंपा, सागरदत्त घरे हुई ते वर बालिका, सागरें परणी सारथवाह सुति नाम तसु सुकुमालिका ॥ २ ॥ तेहने फरसें रे सागर कुंअर बहु बले, तेणे बांकि रे निक्कुक पण तेम परजलें । दान साला रे अातिहां गोवालिया, तेनें पास रे दीक्षा लिए सुकुमा लिया; - सुकुमालिया वनलिए तापन, छठवें अनुदिनें, पंच गोविल एक वेशा देखी चिंते ते मने ॥ एह संयमनो फल ए बेतो, मुऊ पंच जर्त्ता परनवे, थाईज्यो एहवुं करि नियाएं, ईशा देवी हुवे ॥ ३ ॥ कपिलपुरि रे डुपदाय घरे
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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