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________________ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. १११ अवतरी, नांमें धूपदी रे लक्षण श्रावक गुण नरी; पांच पांडव रे आव्या परणवा काज ए, पदी पण रे पूजे श्री जिनराजए;-जिनराज प्रतिमा पूजि परणी हस्तनागपुरि आव ए, पांमवे मान्युं कुबिल नारद, सुपदी न संनाव ए; धातकी खंमे अमरकंका राजधानी नरवरु, पदमनाने खूपदी हरावी, करे बळ आंबिल वरु ॥ ४ ॥ छारावती रे कृष्ण नरेसर राजीयो, बिहु खंभे रे जेहनो महिमा गाजीयो; तेणे. कृष्णे रे पांच पांडव साथें मिली, तरी सागर रे ड्रपदी चाली मनरली;-मनरली सागर वेगे उतरि, गंगा पांमव उतरे, देवी गंगातणे सांनिध, तरी हरि गुण स्तव करे; कहे पांमव बल परीक्षा करी नाव न मोकली, सुण। कृष्णे दी देसवटो, पांच पांमवने बली ॥ ५ ॥ वासुदेवनीरे आणा पांमी पांमवे, पांसुं मथुरारे दक्षिण वासी तिणे हवे; पुत्र प्रसवेरे ड्रपदी पांमुसेन कुंअरु, समोसा रे ओरा नगवन गणहरु:-गणहरु थेरा पास पांमव, नारिस्युं संयम लीए, चौद पूरव नएयां तेणे,
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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