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________________ श्री ज्ञातासूत्रनी सज्झायो. तिहां माण्यां जेणे, तेणे नंदि फल बांड्यां पूर; कुसले खेमे ते घरे पहुता, पाम्यां तेणे सुख नरपुर ॥॥ कां ॥ एम जे संयम लेई मुनिवर, पंच विषय सुख बगमे जेह; इहलोके ते देवतणी परे, परनवे सिव सुख पामे तेह ॥ ए ॥ कां ॥ सारथवाह धनावो कुशलें, अहिबत्ता पुरि करे प्रवेश; काम करी चंपापुरिावे, विलसे लखमी सुखें असेस ॥ १०॥ कां ॥ अन्यदा सेठ लीए वर दीदा, देव थयो लहस्ये सिवराज; एहवा ऋषिनां समरण कीजे, पत्नणे हर्षे मुनि मेघराज ॥ ११ ॥ काम ॥ इति श्रीज्ञातापंचदशमाध्ययन नंदिफल न्याय सज्झायम् ॥१५॥ १६ दूपदी न्याय सज्जायम्. (त्रिभुवन प्रभुरे मल्लिजिणंद जुहारीए-ए देशी.) चंपापुरिरेत्रण वसे सहोदरा, सोम सोमदत्तरे सोमजूति धनेसरा; ते त्रिहुं तणीरे नार्या नागसिरी वमी, जूतसिरीरे जदसिरी रूपें चमीः-चमी रूपें तेणे नयरें, धर्मघोष गुरु परिवर्या; उद्यान आव्या तास शिष्यवर,
SR No.032735
Book TitleSazzay Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherGokaldas Mangadas Shah
Publication Year1922
Total Pages264
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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