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________________ तीनों ही ताप का हरण करते हैं। जन्म जरा मरण इन तीनों दुःखों का हरण करते हैं। भूत, भविष्य और वर्तमान इन तीनों दोषों से मुक्त करते हैं। वर्तमान चोवीसी के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान ने इसी पुंडरिकिणी नगरी में वज्रसेन नाम के तीर्थंकर भगवान के सान्निध्य में तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन किया था। इसी नगरी में भगवान ऋषभ वज्रनाभ नाम के चक्रवर्ती थे। बीस स्थानक तप की आराधना इसी नगरी में की थी। सर्वजीवकरु शासन रसिक की भावना करते हुए मेरे आपके और हम सबके सत् स्वरुप को प्रगट करने की भावना की थी। तीर्थंकर नामकर्म का विपाक उदय होते ही आप भरतक्षेत्र में प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के रुप में प्रगट हुए और सृष्टि में सर्वप्रथम सत् स्वरुप का उद्घोष प्रगट किया। इस महाघोष में अनंत जीवों ने मोक्ष प्राप्त किया। अनेक जीवों ने शासन में स्थान पाया और अनेक जीवों ने सन्मार्ग पाया। मरीचि के रुप में रहे हुए भगवान महावीर की आत्मा में परमात्म बीज का बीजारोपण हो गया। भरत क्षेत्र में तो जैसे एक से चौवीस भगवान के मोक्ष का सेतु (पुल) बन गया। इसतरह पुंडरिकिणी नगरी से हमारा गहरा संबंध रहा हैं। चैत्री पूर्णिमा के दिन उपवास करके विधि विशेष के साथ किए जानेवाले तप का नाम भी पुंडरिक तप है। नंदि सूत्र की स्थविरावली में आचार्य देवर्द्धिगणि द्वारा खमणं और पसन्नमणं शब्दों से स्तुत्य वाचनाचार्य आर्यनंदिल द्वारा प्रतिबोधित और पद्मिनीखंड के पद्मकुमार नामक सार्थवाह की पत्नी वैरोट्या ने चैत्री पूर्णिमा का पुंडरिक तप का उपवास किया था। आचार्य नंदिल ने स्तुतिपरक नमिऊण जिणं पास इस मंत्र गर्भित स्तोत्र की रचना की थी। वैरोट्या यह धरणेन्द्र देवी का पूर्वभव था। इसकी कथा बहुत रोचक है परंतु हमें आज पुंडरिक की चर्चा करनी है इसलिए इतना उल्लेख काफी है। ग्यारह अंगों में दूसरा सूत्र सूयगडांग सूत्र हैं। उसके छटे अध्ययन का नाम वीरस्तुति अर्थात् पुच्छिस्सुणं हैं। दिवाली में इसका स्वाध्याय किया जाता है। उसकी बाईसवी गाथा में परमात्मा महावीर को पुष्पों में अरविंद जैसे कहे हैं। अरविंद अर्थात् क्या? अअर्थात् अनंत, र अर्थात् मणता और विंद अर्थात् वृंद। अरविंद अर्थात् अनंत में रमणता का वृंद-समूह। जिस तरह पुष्पों के समूह में कमल अपूर्व शोभा को प्राप्त होता है उसीतरह परमात्मा हम सब के आत्मीय रमणता के आनंद के कारण है। तीर्थंकर के च्यवन कल्याणक के समय तीर्थंकर की माता को जो स्वप्न आते हैं उसमें दसवां स्वप्न पद्मसरोवर हैं। इस समय माता ऐसे सरोवर के दर्शन करती है जो अनेक पद्मों से आच्छादित होता हैं। वह पद्म सरोवर कमलों से इसतरह आच्छादित होता है कि पूर्ण भरे हुए सरोवर में से एक भी बूंद पानी की या पत्र नहीं दिखाई देते हैं। इसतरह कमलों से भरपूर पद्म सरोवर को तीर्थंकर की माता केवल देखती ही नहीं है पर संपूर्ण सरोवर को मुख के द्वारा भीतर प्रवेश करता हुआ अनुभव करती है। माता को आया हुआ यह स्वप्न पुरिसवर पुंडरियाणं के जन्म की पूर्व सूचना है। ऐसे भी स्पप्न विवरण में प्राय: कमल का स्वप्न होता हैं। हमारे श्रमण भगवान महावीर को छद्मस्थ अवस्था में दस स्वप्न आए थे उसमें छटा स्वप्न कमल था। उसी तरह भगवान महावीर निर्वाण के पूर्व हस्तिपाल
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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