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________________ पुर, पाटण सबकुछ कमल के आकार का है। ऐसे ही एक सुंदर कमल के अंदर कमल के आकार का तीन प्राकारोंवाला समवसरण है। अद्भुत लगनेवाले इस समवसरण में परमात्मा वर्तमान में चार से सात सुबह और शाम को चार से सात में देशना फरमाते हैं। भरतक्षेत्र में जब शाम होती है तब महाविदेह क्षेत्र में सुबह होती है और जब भरतक्षेत्र में सुबह होती हैं तब महाविदेहक्षेत्र में शाम होती है। देशना के पूर्व और पश्चात् दो बार नमोत्थुणं का पाठ होता है। देशना के प्रारंभ में गणधर भगवंत नमोत्थुणं का पाठ करते हैं और देशना के अंत में शक्रेन्द्र महाराज पाठ करते हैं। शक्रेन्द्र महाराज के द्वारा किया जानेवाला पाठ शक्रस्तव कहलाता है। इस अद्भुत समवसरण के सोपान भी अद्भुत होते है। सोपान का आकार कमलपत्र जैसा होता है। आपने विविध प्रकार के पत्थरोंवाले सोपानों की सीढियां देखी होगी परंतु सीमंधर स्वामी के समवसरण में के सोपान, सोपान होते हुए भी न तो सिमेंट काँक्रेट के हैं न तो पत्थरों के हैं। ये है अत्यंत कोमल कमलपत्र जैसे फिर भी पाँव रखते हुए पत्थर के सोपान की तरह हमारा संतुलन बनाए रखते हैं। आँखे बंद कर अपने भाव चित्त में प्रवेश करे और आत्मदर्शन करें तो अनुभव होगा कि आप स्वयं कमलपत्र के सोपान चढ रहे हैं। आरोहण करते हए आपसीधे समवसरण के तीसरे प्रकार में पहुंच चुके हैं। शांत चित्त से गहरे लंबे-लंबे साँस लेते हुए अनुभव कीजिए शांत शीतल वातावरण में सीमंधर स्वामी सामने कमलासन पर बिराजमान हैं। कमलपत्र के आकार के पादासनपर परमात्मा के चरण कमल है। मन ही मन स्वयं के भाग्यशाली होने का अनुभव कीजिए। गणधर भगवंतो की आज्ञा लेते हुए पहुंच जाइए परमात्मा तक। जहेत्थ मएसंधिझोसिएभवति एवमन्नत्थ संधि दुज्झोसिए भवतिजैसा अवसर मुझे आज मिला हैं वैसा दुबारा मिलना मुश्किल है। मैं कितना भाग्यशाली हूँ। दूसरों को कहाँ ऐसा अवसर उपलब्ध हो सकता है। ऐसा सोचते सोचते परमात्मा के चरण कमल तक पहुच जाईए। सर्वात्मना समर्पित होकर नमन कीजिए, मस्तक झुकाइए और बोलिए नमोत्थुणं पुरिसवर पुंडरियाणं । परमात्मा की परम पवित्र उर्जा आपके मस्तक से भीतर प्रवेश कर रही हैं। आप सकारात्मक उर्जा से भर रहे है। आप स्वयं को शुद्ध निर्मल, पवित्र अनुभव कर रहे है। शास्वत सिद्धत्त्व आपमें प्रगट हो रहा है। ऐसे ही कुछ अद्भुत क्षणों में उच्च अनुभव की मानसिक दशा में मीरा ने परमात्मा के चरणस्पर्श का अनुभव करा था। इस अनुभव को उन्होंने तिलक राग में गाकर व्यक्त किया था - मन रे परस प्रभु के चरण कंवल कोमल सुभग शीतल त्रिविध दुःख हरण.... मन रे परस पभु के चरण...। प्रभु के चरणों का स्पर्श कैसा होता है इसका अनुभव गीत के द्वारा मीरा ने यहाँ व्यक्त किया है। प्रभु के चरण त्वरित खीलेहुए फुलों की तरह कोमल होते हैं। सुभग अर्थात् ऐसे भाग्यशाली चरण जिनका स्पर्श करनेवाला भी भाग्यशाली बन जाता है। स्पर्श में स्नेह की अनुभूति और स्नेह में उर्जा की अनुभूति होती है। संसार की उर्जा में उष्मा होती है परंतु परमात्मा की उर्जा शीतल होती है। ये चरणकमल आधि, व्याधि और उपाधि इन
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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