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________________ जन्म और मृत्युपर विजय हो गया। आत्मा का अमरत्व प्राप्त हो गया। ऐसे परुषोत्तमाणं को हमारे नमस्कार हो। नमस्कार का फल यही हैं कि नमस्कार करनेवाला स्वयं नमस्कृत हो जाता हैं। ___ हमारे लिए उत्तमता की बात छोडो पुरुषत्त्व प्रगट हो जाय तो भी बहुत हैं। आनंदघन महाराज अजितनाथ भगवान के स्तवन में हमारी तरफ से कहते हैं, “जेतें जित्यारे तिणेहुं जितीयोरे, पुरुष किस्युंमुज नामा" हे प्रभु! राग द्वेष आदि जिनतत्त्वोंपर आपने विजय प्राप्त की उन सभी तत्त्वों ने मुझे पराजित कर रखा हैं। पुरुष किस्युं मुज नाम - पुरुष कहलाने के भी लायक नहीं हूं क्योंकि पुरि शेते पुरुष। जो मात्र देह में रहता हैं परंतु आत्म स्वरुप को समझकर देह में स्वतंत्र सत्ता के रुप में रहता हैं। देह में रमण नहीं करता हैं वह पुरुष हैं। , पुरुषोंमें उत्तम परमात्मा स्वयं में उत्तम हैं। उत्तमता अर्थात् चेतना का समादर। उनकी उत्तमता हमें कर्मक्षय में कैसे सहायक बने यह प्रश्न हमारा हमेशा का हैं। हम जानते हैं हमारे कर्म बहुत भारी हैं अतः इनका क्षय करके मोक्ष पाना कठिन हैं। कर्मों का सामना करना, कर्मों का मुकाबला करने के लिए हमें कर्मों से भी बलवान सहायता चाहिए। इस के लिए हमें अपने भीतर इनर वर्ल्ड में जाना होगा। हम कल परमात्मा की पुरिससीहाणं पद के द्वारा उपासना करेंगे। हमारे उपास्य हमारे अनुष्ठान में पधारे। हमारे नमस्कार का स्वीकार करें और साक्षात्कार के द्वारा मोक्ष का पुरस्कार दे। बोलो पुरुषोत्तम परमात्मा की जय! आँखे बंद कर नमोत्थुणं पुरिसोत्तमाणं मंत्र का अभिषेक करते हैं। ... नमोत्थुणं पुष्टिसोत्तमाणं . . . . . नमोत्युणं पुष्टिसोत्तमाणं . . . . . नमोत्युणं पुष्टिसोत्तमाणं ...
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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