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________________ मकान तुम्हें खडा करेगा? मकान गिरे तो तुम रोते हो पर क्या तुम गिरो तो मकान रोता है? चैतन्य और पुद्गल की विलक्षणता को जानते हुए भी आप सर्वथा अनजान हो जाते हो। चैतन्यशील आत्मा की यह कैसी दुर्दशा है? अमूल्य समृद्धि से भरपुर चेतन दो पैसे की मिरची लाता है। स्वाद बनाने के लिए खाता है। बायचान्स मिरची तीखी लगती है। खाई तो मुँह में, गई तो पेट में पर दिमाग गरम हो गया। नाक घुरघुराया। आँखों में पानी आ गया। पूरी चेतना डिस्टर्ब हो गयी। एकेन्द्रिय मिरची ने सज्ञिपंचेन्द्रिय ने परम ऐश्वर्य स्वरुप आत्मा को सहज रुला दिया। एकेन्द्रिय को चार प्राण और पंचेन्द्रिय को दस प्राण। चार प्राण वाले ने दस प्राण को रुला दिया। जाने दो चारप्राण वालों की बात सब्जी काटते हुये हाथ में छुरी लग जाए, शेवींग करते हुए ब्लेड से कट लग गया, शैर करते हुए पाँव में छोटी खिली चुभ गई बताओ क्या होगा? निर्जीव लोहे का टुकडा चेतना को कितना हतप्रभ करता है। जगत् में पदार्थ असीम है। किसी पदार्थ की ताकत नहीं, सोच भी नहीं कि हम काटे या चुभे पर परमाणु जब कम हो जाते है तो वह शक्ति संपन्न बन जाते है। परम + अणु = परमाणु यह कितना भी धमाका करे फिर भी चेतनाशील आत्मा के सामने नाचीज है। यदि यही परम अणु का त्याग कर आत्मा के साथ जुड़ जाता है तो परमात्मा बन जाता है। परमाणु से अलग होते ही चेतना का अनंत साम्राज्य शुरु हो जाता है। परमाणु की ताकात इतनी है तो परमात्मा की ताकात कितनी हो सकती है? परमाणु यदि हमें इतना प्रभावित कर सकता है तो परमात्मा हममें कितना कुछ कर सकते हैं - अचिंतसत्तिजुत्ता हि ते भगवंतो वीयरागा - परमात्मा अचिंत्य शक्ति से युक्त है, क्योंकि वे वीतराग भगवान हैं। एक महिला जो माँ है दूध गरम कर रही है। अचानक नीचे से बच्चे की रोने की आवाज आती है। बच्चे समूह में खेल रहे है। अनेक बच्चों में से एक बच्चे की रोने की आवाज उसने सुनी। आवाज पहचानी रोनेवाला मेरा स्वयं का बच्चा है। बताओ मुझे माँ गॅस पर का दूध देखेगी या रोता हुआ बच्चा? आप भी माँ है बताइए क्या करोगे? भगेगी, दौडेगी, शिघ्र बच्चे के पास जाती है देखती है खेलते खेलते बच्चा गिरा है। बारिश के कारण कीचड से सन गया है। नहा धोकर कडक साडी में पार्टी में जाने तैयार माँ खडी रहकर कीचड से सने हुए रोते हुए बच्चे को देखेगी या तुरंत ऊठाकर गले लगा लेगी ? अनंतकाल से अनादि संसार के कीचड में खेलते रहे, गिरते रहे, रोते रहे। ऐसे ही कभी परमस्वरुप विश्वमाता, जगत् जननी ने आवाज सुनी और कीचड से सने हुये हमें उठाया, गले लगाया, साफ किया और सयं संबुद्धाणं के शिशे में हमें स्वयं का सौंदर्य दिखाया। स्वयं के स्वरुप के दर्शन कराये। प्रारंभ में ही आपने सुना हैस्व ने स्वयं का स्वयं द्वारा, स्वयं के लिए स्वयं से स्वयं के स्वयं में प्रगट होना सयंसधुद्धाणं है। आपउलझ गये ना यह सुनकर ? आप सोचोगे ये स्व स्व स्वक्या है? यहाँ स्वयं के सिवा कुछ नहीं है। केवल स्वयं के एक ही शब्द से स्वयं को प्रगट करने की शैली सयं संबुद्धाणं है। स्व ने स्व को जानना है, किसके द्वारा ? किसी ओर के द्वारा नहीं। स्वयं के ही द्वारा स्वयं को जानना है। किसके लिए स्वयं को जानना है? स्वयं के लिए स्वयं को जानना है। किससे जानना है? स्वयं से। किसमें जानना है? स्वयं के स्वयं में । एक अकेला स्व सात विभक्ति 54
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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