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________________ मत सोचो। तुम्हारे आलोक में समस्त विश्व आलोकित हो जाएगा। तुम्हारा शुद्ध स्वभाव विश्व का प्रभाव बन जाएगा। अतः शुद्ध बनो। बुद्ध बनो। स्वयं संबुद्ध बनो । वत्स ! इतना जानो - हम स्वयं है। हमारा अपना स्वयं हैं । हमारा स्वयं ही स्वयं की समृद्धि है। स्वयं से संसार का प्रारंभ होता है, स्वयं से ही संसार का विस्तार होता है और स्वयं से ही स्वयं का मोक्ष होता है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्वयं को समृद्ध करने का सामर्थ्य होता है। वत्स!. इतना जानो हम स्वयं है । हमारा अपना स्वयं है। हमारा स्वयं ही स्वयं की समृद्धि है। स्वयं से संसार का प्रारंभ होता है, स्वयं से ही संसार का विस्तार होता है और स्वयं से ही स्वयं सी स्वयं का मोक्ष होता है । सयंसंबुद्धाणं परमात्मा से हमें तित्थयराणं पद में दो योग प्राप्त हुए - सिद्धांतयोग और जीवनयोग। इसी को तात्त्विक भाषा में तत्त्व और तीर्थ कहा जाएगा। तत्त्व से सिद्धांतयोग प्राप्त हुआ और तीर्थ से जीवनयोग। तित्थयराणं पद में तीर्थ का महत्त्व देख चुके जहाँ पानी के बिना प्यास छिपती है, बिना भोजन के भूख मिटती है, बिना सोये आराम मिलता है। निरंतर समवसरण का संन्निधान, निरंतर परमात्मा का निदिध्यासन निरंतर देशना श्रवण । परमात्मा का एक स्वघोष - सयं सययं सयं तुम स्वयं सतत स्वयं के साथ रहो । अप्पणा सच्चमेसेज्जा - स्वयं को खोजो और स्वयं में खो जाओ । स्वयं को जानना मोक्ष का मार्ग है। तू स्वयं मोक्ष स्वरुप है। तू स्वयं परमात्मा है। तेरा शास्वत स्वरुप, तेरा भगवत स्वरुप तुझ में ही है तू उसे प्रगट कर । सयं संबुद्धाणं पद के द्वारा गणधर भगवंत हमें यही कहते है, वत्स ! स्वयं के सिवा परमात्मा के पास ओर कुछ मत मांगो। अनादि काल से तुम्हारा स्वयं तुमसे खो चुका है। उसे खोजो न मिले तो उसे प्रभु से मांगो। तुम्हारा स्वयं जितना तुमसे नजदीक है उतना तुम्हारे नजदीक विश्व में कुछ भी नहीं है । आश्चर्य तो इस बात का है कि, मनुष्य जितना दूर का देख सकता है उतना नजदीक का नहीं । चाँद पर पहुंचे गॅगरीन को जब पूछा गया चाँद पर पहुंचकर तुमने सबसे पहले क्या देखा? पता है उसने क्या कहा ? उसने कहा, मैं ने चाँद पर से सर्व प्रथम मेरी धरती देखी जो बहुत ही सुंदर थी। धरती का ऐसा सौंदर्य पहले मैं ने कभी नहीं देखा । है न आश्वर्य की बात । धरतीपर रहकर धरती कभी न देखी, धरतीपर से देखा चाँद और चाँद पर से देखी धरती । मानव को दूर का देखने की आदत है। स्वयं के नजदीक आओ। स्वयं के भीतर जागो। स्वयं से सुंदर विश्व में कुछ नहीं है इसका अनुभव करो। स्वयं ही स्वयं के स्वयं (भगवान) के दर्शन होंगे। स्वयं से अतिरिक्त विश्व में सबकुछ पर है। पुद्गल के साथ का हमारा संबंध कैसा है। हमारा प्रभाव अधिक है या पुद्गल का प्रभाव अधिक है? जिस जमीन पर कुछ नहीं होता है उस प्लॉट पर तुम प्लान बनाकर उचा-नीचा आडा-खडा मकान बना लेते हो। तुम मकान खडा कर सकते हो पर क्या कभी उस मकान में तुम गिर पडो तो क्या 53
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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