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________________ नमोत्थुणं - अरिहंताणं नमोत्थुणं में नमस्कार हो जाते है। नमस्कार कोई विधि या घोषणा नहीं है यह तो समर्पण की शांत घटना है। नमोत्थुणं कोई कृत्य नहीं समर्पण का संविधान है । प्रथम पद है अरिहंताणं । पंचपरमेष्ठि मंत्र में प्रथम दो पद देव तत्त्व है और अंतिम तीन पद गुरुतत्त्व है । देव तत्त्व दो है अरिहंत और सिद्ध । अरिहंत मार्ग है सिद्ध मंजिल है। मंजिल की अपेक्षा मार्ग का महत्त्व अधिक होने से अरिहंताणं पद सिद्धाणं पद के पूर्व है । अरिहंताणं यात्रा की शुरुआत है । सिद्धाणं यात्रा की पूर्णता है। अरिहंताणं आदि है । सिद्धाणं अंत है । सिद्ध हमारी अवस्था है । अरिहंत हमारी आस्था है । आस्था अवस्था देती है इसलिए अवस्था को कमजोर न समझो । अरिहंताणं पद सूत्र और अर्थ से शाश्वत है । अनादि काल से इस के एक भी अक्षर में परिवर्तन नहीं हुआ है । केवल चार सेकंड में बोले जानेवाले इस मंत्र से दो लाख पैतालिस हजार पल्योपम का देव गति का आयुष्य बंधता है । अरिहंताणं शब्द तीन आयामों से समझा जाता है । १) अरि + हंताणं = अरिहंताणं २) अरिहं + ताणं = अरिहंताणं ३)अरिहंत+आणं =अरिहंताणं एक छोटे से पद में अरिहंताणं पद की तीन व्याख्याए प्रस्तुत है। ' __इन तीनों शब्दों में खास अंतर न होते हुए भी बहुत बड़ा अंतर समाया हुआ है। समान दिखने वाले इस अंतर में व्याख्याकारोंने इनके गूढ अर्थ प्रस्तुत किए हैं। पहला शब्द है, अरि + हंताणं। अरि + हंताणं में परमात्मा हमारे “समक्ष" रहते हैं। हमारे साथ रहते हैं। हम पर वार होते ही वे वार को समाप्त करते हैं। कभी आप प्रयोग करके देखे। आपको क्रोध आया हो और आप क्रोध करना नहीं चाहते है तो अरिहंताणं पद का स्मरण करके देखे। भगजाएगा क्रोध। टूट जाएगा अहं । गायब हो जाएगा मान। ___ अरिहं + ताणं में परमात्मा “सक्षम" है । सामर्थ्य संपन्न है । अरिहं शब्द अर्हद् धातु से उत्पन्न होता है। जिसका अर्थ होता है योग्यता । डिग्री देते समय आपने अर्हता प्राप्त शब्द सुना होगा। ताणं अर्थात त्राण अर्थात रक्षण करने में सक्षम है समर्थ है वे अरिहं+ ताणं अर्थात अरिहंताणं है। अरिहंत + आणं इस व्याख्या के अनुसार परमात्मा हमारे “समकक्ष" है अथवा हम परमात्मा के समकक्ष है । परमात्मा की आज्ञा हमें परमात्मा के समकक्ष बनाती है । दहीं की दो बूंदे प्राप्त कर दूध पूर्ण दहीं बन जाता है । उसी तरह परमात्मा की आज्ञा प्राप्त कर आत्मा परमात्मा बन जाती है। जिनके पास बैठने से हमारे सारे विकल्प शांत हो जाते हैं, हमारा अहं,मत, अभिप्राय टूट जाते हैं। वे अरि +हंताणं हैं अर्थात अरिहंताणं है । जिनके पास हमें हम न होने की अनुभूति नहीं होती है वे अरिहं + ताणं हैं अर्थात् अरिहंताणं हैं। जिनके पास हमें अरिहंत होने की अनुभूती होती हैं वे अरिहंत + आणं है अर्थात् अरिहंताणं है। 23
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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