SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रज्ञा के दो प्रकार हैं- संबोधप्रज्ञा और सिद्धप्रज्ञा । साधना का चरमचरण सिवमयल पद सिद्धप्रज्ञा का मंत्र उसके बाद पूर्णता में प्रस्तुत यह मंत्र संबोध प्रज्ञा का मंत्र हैं। जो सिद्धप्रज्ञा को न पा सके उनके लिए संबोधप्रज्ञा की उपासना इस मंत्र के द्वारा की जाती है। यह मंत्र सिद्धत्त्व प्राप्ति का और सिद्धत्त्व प्राप्ति से पूर्व रहे हुए संसार को समाधि पूर्वक समापन करने का मंत्र हैं। इस मंत्र में अडतालीस हजार विद्याएं समाई हुई है। इस विद्या में से ही भक्तामर स्तोत्र का सर्जन हुआ है। मोत्थु सूत्र में भय से संबंधित दो पद हैं, एक अभयदयाणं और दूसरा जिअभयाणं । सूत्रार्थ, शब्दार्थ और पदार्थ की दृष्टि से भगवंत शब्द में भय का अंत करनेवाले भंते ऐसी व्याख्या होती है। अभयदयाणं अर्थात् अभय देनेवाले और जिअभयाणं अर्थात् स्वयं भय को जीतनेवाले और हम सबको भय से जीताने वाले । परमात्मा के लिए संबोधित दोनों पद हमारे महत्त्वपूर्ण आत्म विश्वास के केंद्र स्थान में हैं। एक में भय को जीतना हैं दूसरे में परम से अभय लेना हैं । भय समाप्त करने की दो प्रक्रिया हो गई। भय को जीतना और अभय लेकर भय समाप्त करना । सोचने की बात तो यह कि, थोडा गहराई में उतर जाए तो अहसास होता हैं कि, भवांतरों से हम भगवान से अभय लेते रहे है। हम भीतर से ही भय से लडने के लिए तैयार नहीं हैं। भय आते ही हम अभय माँगने निकल जाते है। भगवान अभय भी देते है। ऐसा सोचने पर लगता है कि हम बहुत दिलदार माँ के लाडले बेटे की तरह है। जब माँगा, जो माँगा, जितना माँगा मिलता रहा। परिणाम यह हुआ कि हमें माँगने की आदत हो गई और मैदान में लडते समय भयभीत होकर भगने की भी आवश्यकता लगने लगी। इन सब विषयो की चर्चा हम प्रस्तुत भगवंताणं और अभयदयाणं पद में कर चुके हैं। जिअभयाणं पद हमारे आत्मविश्वास का पद है। यह पद हमें अभय माँगने की मजबुरी से पूर्व, भयभीत होने की कमजोरी से पूर्व भय जीतने का हौसला बनाता है। यह हमें सिखाता हैं कि भय त में भगवान की प्रीत है । इस पद के दो विभाग है - नमो जिणाणं और जिअभयाणं । नमो जिणाणं पद हमारा आत्मविश्वास ता है और अभयाणं हमें निर्भय और स्वकेंदित बनाता है । भय भक्ति से विपरीत है। जहाँ भक्ति होती है वहाँ भय रह नहीं सकता। भय वह भूतकाल की ऐसी दशा है जो हमारे वर्तमान में भविष्य की कल्पना कराता है। मृत्यु का भय जीवन को असंतुलित करता है। झूठ का भय सच का दिखावा करता है। रोग का भय आरोग्य को खतरे में डालता है। दुःख का भय सुख को दुःखमय बनाता है। यदि हम इन सब भय को जीत लेते है तो हमें परमात्मा से अभय लेने की आवश्यकता नहीं रहती है। सबसे अजीब बात तो यह हैं जिन परमात्मा से अभय लेते रहते है उन परमात्मा का स्मरण भी करीब भय से ही करते हैं। प्रेम से पाने के प्रेममय तत्त्व की पूजा भी भय से करते हैं। संसार में हमें प्रतिक्षण प्रतिकदम भय हैं। चोर, डाकु, रोग-शोक इन सबका तो भय है परंतु समाज का अर्थ तंत्र का, राजतंत्र का सबका भय हमें सताता है। यह सब तो ठीक है परंतु यहाँ आश्चर्य तो इस बात का है कि हमें अभयदाता से भी भय है। हम उनसे भी भयभीत रहते हैं। हम अपनी शिशुसंस्कृति को भी ऐसी अमानत देते हैं झूठ मत बोल, चोरी 247
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy