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________________ नमोत्थुणं नमोजिणाणं जिअभयाणं भय को जीते वे भगवान । हम सबको भय से जितावे वे भगवान । हम सबको भयमुक्त करे वे भगवान । जन्म और मृत्यु के भय से मुक्त करें वे भगवान । हमें जन में से जिन बनानेवाले को हमारे नमस्कार । हम यदि भय मुक्त न हो पाए तो हमें अभय देकर भय मुक्त करे वे भगवान ।। परमात्मा की गोदी में मस्तक रखते ही हम निर्भिक हो जाते हैं। परमात्मा की गोदी में मस्तक रखते ही हम निर्मल हो जाते हैं। परमात्मा की गोदी में मस्तक रखते ही हम निश्चिंत हो जाते हैं। गोदी शब्द का प्रयोग होते ही सहसा उसके साथ माँ का संबंध साक्षात् हो जाता है। परमात्मा की गोदी भी माँ की गोदी का अहसास दिलाती है। माँ की गोदी वत्सलता के साथ निर्मलता भी देती है। बच्चे को माँ के गोद से प्रदत्त पवित्रता की तनिक भी पहचान नहीं होती है। माँ निर्मल करती है बच्चा पुनः पुनः मल निःसरण कर माँ की गोद को लीन करता रहता है। सृष्टि का यह कितना बडा रहस्य है कि बच्चा बार बार गोद को मलीन करता है माँ उसे पूर्णत: पवित्र करती है। हम भी परमात्मा के साथ यही करते हैं। परमात्मा के चरणों में मस्तक रखते है तब हम अपने विकल्पों का, विकारों का, मलीन विचारों का विसर्जन करते हैं। लेकिन जगत् जननी हमें निरंतर निर्मल करती हैं, पवित्र करती हैं। माँ की गोद का दूसरा अहसास निर्भयता है। संसार में चाहे कही कुछ भी हो। कितना ही भयभीत वातावरण हो । कितनी आकुलता व्याकुलता हो। सबसे बच्चे के लिए माँ की गोद सर्वथा सुरक्षा का साधन होता है। माँ की गोद में जाते ही बच्चा समस्त भय से मुक्त हो जाता है। इसीतरह परमात्मा क चरण शरण साधक के लिए निर्भयता का अखंड स्रोत है। बस एकबार पूर्ण समर्पण के साथ मस्तक धर देना चाहिए। माँ की गोद का तीसरा अहसास निश्चिंतता हैं। सारी चिंताएं, दुःख, कष्ट, ग्लानि माँ की गोद में गायब हो जाते हैं। न कोई चिंता न कोई व्यथा । इसीतरह परमात्मा की शरण भी सब चिंताओं से मुक्त करती है। गोदि का महत्त्व ही अद्भुत है। जिनकी गोदि में मस्तक रखते ही दुःख समाप्त हो जाए, उसे माँ कहते हैं। जिनकी गोद में मस्तक रखते ही पाप समाप्त हो जाए, उन्हें महात्मा कहते हैं। जिनकी गोदि में मस्तक रखते ही संसार समाप्त हो जाए, उन्हें परमात्मा कहते हैं। 246
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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