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________________ संपत्ति वैभव के लिए उचित अनुचित जो भी करना पडे सदा तत्पर रहना स्वार्थ है। ऐसे व्यक्तियों को कम्मसारहिणं कहेंगे। धम्मसारहिणं हमें कम्मसारहिणं से बचाकर हमारी धर्म यात्रा का धारण, पालन, चालन करते है, संचालन करते है। मोक्षतक की यात्रा का वहन करते है। आज उन्हें नमस्कार करके विनंती करते हैं। प्रभु आज तेरे इस धर्मरथ पर आरुढ हो रहा हूँ। मैं बहुत भरा हुआ हूँ। बहुत भारी हूँ। तू अगुरुलघु स्वभाव वाला है। फिर भी हमें इस रथपर आरुढ होने का अवसर दिया, आज्ञा दी इसलिए आभार मानते है। रथपर आरुढ होकर हम अपने आपको, आसपास के वातावरण को और हमारे रथ के उन सारथि को जिन्होंने हमारी इस कठिन यात्रा की जिम्मेवारी ली हैं उन्हें हम ऐंजॉय करते हैं। निरंतर उनके साथ रहने का सुअवसर और सौभाग्य प्राप्त हुआ है उसका पूर्णत: लाभ लेते हैं। पूर्ण जागृति पूर्वक अपनी इस अध्यात्म यात्रा में शामिल होकर शासन की संयोजना में शासनपति सारथि के साथ संयुक्त हो जाते हैं। अनुभूतिपरक यात्रा का आनंद लेते हुए आइए चतुष्पथ पर पहुंचते हैं। चारों ओर से पूर्णतः सर्वत:भद्र का आनंद लेते हुए नमोत्थुणं धम्मसारहिणं का कीर्तन करते हैं। नमोत्युणं धम्मसारहिणं.. नमोत्युणं धम्मसारहिणं.. नमोत्थुणं धम्मसारहिणं... 192
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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