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________________ जाएगी। बच्चा कहता हैं वह मर जाए तो उसमें मेरा क्या नुकसान हैं? बेटा! वह हमारे पाँव के नीचे कुचलकर मरती हैं तो हमें पाप लगता हैं। बच्चा कहेगा पाप लगने से क्या होता हैं? बच्चे का इसतरह पूछना महत्त्वपूर्ण नहीं हैं परंतु आपका उत्तर अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। क्या कहोगे आप बच्चे से ? यही न कि पाप लगने से दुःख होता हैं। इसलिए हमें चींटी को नहीं कुचलना चाहिए। ज्ञानी पुरुष कहते हैं पाप लगे इस कारण से जीवदया नहीं पालनी हैं परंतु जीव में जीवत्त्व हैं अतः उसके अस्तित्त्व का स्वीकार करना चाहिए। आप ने बच्चो को समझाना चाहिए जैसा तू जीव हैं वैसा ही जीव इस चींटी के शरीर में हैं। शरीर में पीडा होनेपर जैसा तुझे दुःख होता हैं, मुझे दुःख होता हैं वैसा ही दुःख चींटी को भी होता हैं। किसी को दुःख देने से हमें पाप लगता हैं। पाप से दुःख बनते हैं। सर्व जीवों को जीवन प्रिय हैं। सव्वेसिं जीवियं पियं दुःख किसी को भी अच्छा नहीं लगता हैं। इसी कारण किसी जीव को दुःख नहीं देना चाहिए। आतापना, किलामना, पीडा नहीं उपजानी चाहिए। अहिंसा परमोधर्म की जय यह सूत्र संपूर्ण भारतवर्ष का सूत्र हैं। हमारे देश का यह शास्वत मंत्र हैं। अहिंसा का यह सूत्र तीन विभागों में बंटता हैं। इन विभागों के द्वारा तीन संस्कृति का बंधारण बना। १. अन्य जीवों को मारकर भी जिओ । २. स्वयं जीओ और दूसरों को भी जीने दो । ३. मरकर भी अन्य जीवों को जिलाओं । ये तीन सिद्धांत तीन धर्म का, तीन संस्कृति का संयोजन बन गया। इसमें से हमारा धर्म कौनसा है पहचानो? प्रथम सिद्धांतवाले कहते हैं दूसरों को मारो, काटो, दुःख दो पर हमें सुख मिलना चाहिए। दूसरा कहता हैं स्वयं जिओ और अन्य को भी जीने दो । तीसरा वर्ग कहता हैं खुद मरकर भी दूसरों को जिलाओं, जीने दो । तीसरी संस्कृति आपकी संस्कृति हैं। जिन शासन में धर्मरुचि अणगार जैसे महापुरुष हो गए। जिन्होंने कटु तुंबी की सब्जी गोचरी में लायी थी। नियम के अनुसार गुरु को गोचरी दिखाने गए। गुरु ज्ञानी थे । पात्र खोलते ही अतिशय खुशबुवाले पदार्थ को पहचान गए। शिष्य के हितस्वी गुरु ने शिष्य से कहा यह सब्जी मैं चखकर तुम्हें वापरने की आज्ञा दूंगा। ऐसा कहकर पात्र में से थोडा चखकर शिष्य से कहा वत्स! यह कटु तुंबे की सब्जी हैं। कडवा तुंबा जहर से भरा हुआ हैं। अत: इसे मत आरोगना । शिष्य ने कहा गुरुवर इसे मैं गोचरी में लाया हूँ वापस लौटा भी नहीं सकता हूँ । रोग भी नहीं तो क्या करूं ? गुरु ने कहा निर्दोष जगह देखकर परिष्ठापना करो । मुनिश्री धर्मरुची हाथ में पात्र लेकर पदार्थ की परिष्ठापना करने के लिए निर्दोष भूमि की प्रतिलेखना करते हैं। निर्दोष जगह अर्थात क्या? आप यह जानते हैं? जहाँ कोई जीव जंतु न हो, जहाँ परिष्ठापना करने से दूरतक भी किसी जीवों को बाधा पीडा न उपजे ऐसी जगह को निर्दोष जगह कहते हैं। मुनिश्री नें कुम्हार के एक निम्हाडे में जहाँ राख का बड़ा ढेर होता हैं उसमें परठाकर राख में मिश्रण कर देने से किसी जीव को पीडा नहीं हो पाएगी। ऐसा सोचकर सब्जी की एक बूंद राख के ढेरपर डाली। कुछ क्षण में ही चींटियाँ वहाँ आ गयी। देखकर सोचने लगे हैं तो यह सब्जी है कडवे तुंबे की परंतु अत्यंत भारी व्यंजनों से बनने के कारण यह चींटियों के रसास्वाद का कारण बन 161
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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