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________________ कोई परवाह नहीं। हमें चाह होनी चाहिए कि हमारा हृदय कमल खुला हो, पवित्र हो। भले ही देव समुदाय सुवर्ण कमल की रचनाकर प्रभु को उसपर चलाते हो। एक बार आप प्रयास करके तो देखिए। अपना हृदय चैतन्यवंत कर प्रभु को आंमत्रित तो कीजिए। चरण का पूजन कर हम प्रभु से कहेंगे हे परमतत्त्व! तेरे चरण मेरा मार्ग है तेरी चाल , मेरी मंजिल है। तेरे चरणों का पूजन करते करते मुझे मोक्ष पहुंचना है। एक रुपक बहुत प्रसिद्ध है - एकबार यात्रापर निकले हुए भक्त ने भगवान से कहा आप मेरे साथ रहना। यात्रा में उसे जगह जगह अपने दो कदमों के साथ भगवान के दो कदम भी दिखाई देते थे। कुछ समय के बाद मार्ग में तुफान आया। कुछ दिखाई नहीं देता था। घबराया। तुरंत ध्यान आया भगवान मेरे साथ है। सहसा उसने वो दो कदम देखने का प्रयास किया, परंतु वे चरण दिखाई नहीं दिए। मन ही मन सोचा समय पे तो भगवान भी साथ छोड देते है। शाम हुई तुफान शांत हुआ पुनः भगवान के चरण दिखाई दिए। उसने भगवान से कहा प्रभु ! तुफान में तो आपने भी मेरा साथ छोड दिया। भगवान ने कहा, किसने कहाँ कि मैं तेरे साथ नहीं था। आँधी के समय मैं ने तुझे उठा लिया था। दिखाई देने वाले दो चरण तेरे नहीं मेरे थे। ___ एकबार जंबुस्वामी ने सुधर्मा स्वामी से कहा मैं जब भी राजगृही नगरी में भिक्षाचर्यादि के लिए विचरण करता हूँ तब लोग मुझे पूछते हैं कि भगवान महावीर कहाँ गए? कब आएँगे ? मुझे पता नहीं मैं उन्हें क्या उत्तर दूँ। पहले आप मुझे यह बताए कि परमात्मा कहाँपर हैं ? क्या कर रहे हैं ? कैसे और कब वे हमें मिल सकते हैं। गुरु ने शिष्य के मस्तकपर हाथ रखकर कहा भगवान ! तेरे नयनपथ पर बिराजमान हैं। नयनपथ अर्थात् क्या ? नयन अर्थात् आँखे, पथ अर्थात् मार्ग। आँखों का मार्ग कौनसा हो सकता हैं ? आँख का रस्ता अर्थात् नजर। जहाँ जहाँ नजर वहाँ वहाँ मार्ग। पथ पाने के लिए संसार से अलग होना पडेगा। अब तू महापुरुषोंद्वारा सेवित राजमार्गपर पहुंचा है। अत: गच्छामि मग्गं विसोहिया। पूर्ण विशुद्धिपूर्वक विश्वास रखकुर चलता रहे। संपई णेयाउए पहे। शिघ्र ही तू न्याययुक्त मोक्षमार्ग को पा सकेगा। तू मार्ग के प्रति निरंतर समर्पित रहना। इस प्रक्रिया में संसार छोडना नहीं पडता, छूट जाता हैं। इसके अतिरिक्त ऐसी कोई भी प्रक्रिया नहीं हैं जिसमें संसार छूट सके। कई संसारी लोग ऐसी घटना लेकर आते हैं जिसमें छूटने की बात होती हैं। अलग होने की बात होती है। आप लोगों में से ही कई लोग कहते हैं बहू को अलग होना है। हमने कह दिया हमारी तरफ से कोई मनाई नहीं हैं। यह घर हमारे नाम का हैं। बनाओ अपना घर और रहो अलग। एक कवी ने इस अलगाव को समझाते हुए कहा हैं - . बे रस्ताओ अचानक मळी गया, बे घडी वाते वळग्या अने छूटा पडी गया। बे झरणाओ अचानक मळी गया, एक बीजाने भेंट्या अने एक बीजामां भळी गया। अने पछी अमे अचानक मळी गया, अमे नथी रस्ता के नथी झरणा, अटले न तो छूटा पड्या अने न तो भळी गया ।।। आपको समझ में आया ? दो रास्ते चार रास्ते आपस में मिलते हैं और अपने अपने राहपर आगे बढ जाते हैं इसीतरह पानी के झरने झरते हैं, गिरते हैं, किसी जगह मिलकर एक दूसरे में विलिन हो जाते हैं। हमारी ट्रेजडी 151
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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