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________________ चक्षु से दो चीज देखी जाती हैं रुप और रस्ता। रुप के दो प्रकार हैं - स्वरुप और पररुप। पररुप हम अनादिकाल से देख रहे है। चक्खुदयाण मंत्र द्वारा गुरु गणधर भगवंत हमें स्वरुप देखना सिखाते हैं। चक्षुदाता हमें बारबार उद्बोधित करते हैं कि तुम स्वयं दृष्टा बनो दृश्य नहीं। तुम स्वयं को देखो यदि तुम दृश्य बन जाओगे तो स्वयं को न देख पाओगे। फिर तो संसार तुम्हें देखेगा। संसार देखता रहेगा तुम भयभीत बनते जाओगे। क्योंकि जितने लोग देखेंगे उतने अभिप्राय भी बनेंगे। स्वयं दर्शक बनो अन्यों को दर्शक न बनने दो। स्वयं का सहज स्वरुप देखते देखते हमें मार्ग देखना हैं। मग्गदयाणं से मार्ग प्राप्तकर हमें मोक्षतक पहुंचना हैं। आइए आज नमोत्थुणं चक्खुदयाणं की आराधना में संल्लीन होकर मग्गदयाणं को आमंत्रित करते हैं। नमोत्युणं चक्खुदयाणं नमोत्थुणं चक्खुदयाणं नमोत्थुणं चक्खुदयाणं 145
SR No.032717
Book TitleNamotthunam Ek Divya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyaprabhashreeji
PublisherChoradiya Charitable Trust
Publication Year2016
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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