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________________ बोसवाल जाति का इतिहास श्री मानमलजी दूगड़, जोधपुर आपका परिवार जोधपुर में निवास करता है । आप कई वर्षों से जोधपुर स्टेट में हुकूमात करते है तथा इस समय भीनमाल आदि के हाकिम हैं। आप बड़े सज्जन, मिलनसार और लोकप्रिय महानुभाव हैं । आपके छोटे भ्राता चांदमलजी दूगड़ जोधपुर स्टेट के जालोर नामक स्थान की डिस्पेंसरी में राक्टर हैं । आप भी बहुत लोकप्रिय हैं । आपका परिवार जोधपुर की पोसवाल समाज में प्रतिष्ठा रखता है। लाला मोहरसिंहजी दूगड़ का खानदान, कपूरथला लाला मोहरसिंहजी-इस खानदान के पूर्वज लाला मोहरसिंहजी जम्बू में निवास करते थे वहाँ से आप ने लाहौर और लुधियाना होते हुए जालंधर में अपना निवास बनाया। जालंधर में आपने बहुत बड़ा नाम पाया था। आपके नाम से जालंधर में मोहरसिंह बाजार आबाद है। आपके खानदान का काबुल के शाही खानदान से तिजारती ताल्लुक रहा । जब शाहशुजा से महाराजा रणजीतसिंह ने कोहिनूर हीरा लिया था, उस सम्बन्ध की बात चीत तय करने वाले व्यक्तियों में यह कुटुम्ब भी शामिल था। लाला मोहरसिंहजी की होशियारी व अक्लमन्दी से प्रसन्न होकर कपूरथला के तृतीय महाराज फतहसिंहजी इनको बड़ी इज्जत के साथ जालंधर से अपनी राजधानी में लाये तथा आपके सिपुर्द स्टेट ट्रेशरी का काम किया। पंजाव के दरबार में आपको कुर्सी मिलती थी । आपके परिवार ने सिक्ख वार, अफगान वार, तीरा वार और ग़दर के समय वृटिश गवर्नमेंट को काफ़ी इमदाद दी और इन युद्धों में आपका परिवार शामिल हुआ। इन सब सेवाओं का ख़याल करके इस खानखान को लॉर्ड सर जॉनलारेंस ने जालंधर और फीरोज़पुर डिस्ट्रिक्ट में बहुत सी लैंडेड और हाउस प्रापर्टी दी, जो इस समय तक इस परिवार के अधिकार में है। लाला मोहरसिंहजी के लाला जुहारमलजी, लाला निहालचन्दजी लाला, मुश्तहाकरायजी लाला, गंगारामजी तथा लाला वस्तीरामजी नामक ५ पुत्र हुए। इन भाइयों में लाला जुहारमलजी के पुत्र लाला मत्थूमलजी तथा लाला मुश्तहाकरायजी के लाला देवीसहायजी नामक पुत्र हुए। शेष तीन भाइयों के कोई औलाद नही हुई। ये पांचो भाई अपनी प्रापर्टी तथा बैकिंग का काम काज देखते रहे। लाला निहालचन्दजी लाहोर प्रापर्टी का काम देखते थे तथा उनका अधिककर जीवन यहीं बीता। लाला नत्थूमलजी का खानदान-लाला नत्थूमलजी का जन्म संवत् १९१३ में हुआ। मापने अपने हाथों से कई दीक्षा महोत्सव कराये, तथा साधु संगति और धार्मिक कामों में हजारों रुपये खरच किये। आपके समय में भी रियासत के साथ आप का लेनदेन का सम्बन्ध रहा करता था । आपने म्यापार में लाखों रुपये कमाये। इस प्रकार प्रतिष्ठा पूर्वक जीवन बिताते हुए आप संवत् १९८४ में
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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