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________________ आपकी प्रकृति बढ़ी उदार थी । आपको ग्रंथ संग्रह का बड़ा शौक अच्छे ग्रन्थों का संग्रह किया । आपको प्रायः सभी सार्वजनिक कार्यों में आप सहायता प्रदान किया करते थे । था । कहना न होगा कि आपने अपनी प्रायवेट लायब्रेरी में बहुत अच्छे आपका स्वर्गवास संवत् १९८७ में होगया। आपके रामलालजी नामक एक पुत्र हुए । आपका जन्म संवत् १९६५ का है। आप सुधरे हुए विचारों के युवक हैं । भी पठन पाठन का बहुत शौक है और आपने भी एक प्राइवेट लायब्रेरी खोल रक्खी है। अपिका व्यापार कलगत्ता में मेसर्स बींजराज भैरौदान के नाम से ११३ क्रास स्ट्रीट मनोहरदास का कटला में बैंकिंग, कमीशन और इम्पोर्ट का होता है । आपही इस फर्म के संचालक हैं तथा योग्यता से संचालित करते हैं । आपके अनूपचन्दजी नामक एक पुत्र हैं। जिनकी अवस्था ५ बर्ष की है । सेठ तनसुखदासजी का जन्म संवत् १९१६ का है । आप आजकल अलग रहते हैं । आप भी बड़े व्यापार कुशल सज्जन हैं। आपका शहर भर में बड़ा प्रभाव ' तथा आपकी सच्चाई पर लोगों का पूरा विश्वास है आपने व्यापार में भी लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की। आपके मंगसमलजी नामक एक पुत्र हैं। मंगलचंदजी के नाम पर आप शोभाचन्दजी को दत्तक ले चुके हैं। आप बाईस सम्प्रदाय के मानने वाले हैं। शोभाचन्दजी के इस समय चार पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः मालचन्दजी, भूरामलजी. किशनलालजी और रिधकरणजी हैं । सेठ सराजजी का जन्म संवत् १९२१ में हुआ । आप बड़े गम्भीर विचारों के पुरुष हैं । आपकी सलाह बड़ी वजनदार मानी जाती है। आपका ध्यान भी व्यापार में बहुत रहा एवम् आपने बहुत सम्पत्ति उपार्जित की। आप बीकानेर- स्टेट कौन्सिल के मेम्बर हैं । आप भी बाईस सम्प्रदाय के अनु यायी हैं। आपके ५ पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः इन्द्रराजजी, शोभाचन्दजी ( जो तनसुखदासजी के यहाँ दत्तक चले गये हैं) नगराजी, सोहनलालजी और माणकचन्दजी हैं। इनमें से प्रथम इन्द्रराजजी आप से अलग होकर अपना स्वतन्त्र व्यवसाय इन्द्रराजमल सुमेरमल के नाम से कलकत्ते में करते हैं। सेठ तनसुखरायजी और सेठ प्सराजजी का व्यापार शामलात में कलकत्ता मनोहरदास कटला ११३ क्रास स्ट्रीट में होता है। यहां डायरेक्ट कपड़े का इम्पोर्ट और जूट का व्यवसाय होता है । सेठ तेजमालजी दूगड़ का परिवार सरदारशहर इस परिवार के व्यक्ति पहले फतहपुर ( सीकरी ) के निवासी थे । वहाँ वे लोग नबाब के यहाँ राज्य के ऊँचे २ पदों पर आसीन रहे । वहीं से उनके वंशज सवाई नामक स्थान पर आकर बसे । सवाई से फिर जब कि सरदारशहर बसा, तब इस परिवार वाले सेठ लालसिंहजी सरदारशहर आकर बस गये । ४११
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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