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________________ श्रेसिवाल जाति का इतिहास यहाँ आकर आप साधारण लेन-देन का व्यापार करने लगे । आपके चैनरूपजी, माणकचंदजीभौर बुधसिंहजी नामक तीन पुत्र हुए। वर्तमान परिवार चैनरूपजी का है। - चैनरूपजी के तीन पुत्र हुए जिनमें दो का परिवार नहीं चला तीसरे तेजमालजी का परिवार विद्यमान है। सेठ तेजमालजी पहले अपने भाई के साथ कलकत्ता गये और वहाँ से फिर सिलहट जाकर वहाँ भआपने अपनी फर्म खोली एवम् अच्छी सफलता प्राप्त की। वहाँ से आप वापस देश मा रहे थे कि रास्ते में डलोद में उनका स्वर्गवास हो गया। आपके हजारीमलजी कोदामलजी, और बालचंदजी नामक तीन पुत्र हुए। कोदामलजी निःसंतान स्वर्गवासी हुए। बालचन्दजी के भी कोई पुत्र न हुमा। अतएव हजारीमलजी के पुत्र तोलारामजी दत्तक लिये गये, जो वर्तमान हैं। आपके मोतीलालजी, जयचंदलालजी और मानमलजी नामक तीन पुत्र हैं। सेठ हजारीमलजी इस परिवार में खास व्यक्ति हुए। आपने कलकत्ता आकर संवत् १९४२ में हजारीमल समरथमल के नाम से रेडीमेड क्लाथ का काम प्रारम्भ किया। इसमें आपको अच्छी सफलता रही। आपका स्वर्गवास हो गया। आपके बिरदीचंदजी, खूबचन्दजी, सागरमलजी, तोलारामजी एवम् समरथमलजी नामक पाँच पुत्र हुए। आप सब लोग संवत् १९६४ तक साथ २ व्यापार करते रहे, पश्चात् अलग २ हो गये। बिरदीचंदजी के पुत्र इन्द्रचन्द्रजी इस समय दलाली का काम करते हैं। भापके बुधमलजी और चन्दनमलजी नामक पुत्र हैं। खूबचन्दजी के पुत्र करनीदानजी एवम् रिधकरणजी भी अपना स्वतंत्र व्यापार कर रहे हैं। रिधकरणजी के मनालालजी नामक एक पुत्र हैं। सागरमलजी एवम् समरथमरूजी दोनों भाइयों ने मिलकर संवत् १९४८ तक फिर शामलात में काम किया और फिर अलग २ हो गये । इस बार आप लोगों को अच्छा लाभ रहा। सेठ सागरमलजी का स्वर्गवास हो गया और भापके पुत्र स्वरूपचन्दजी, शुभकरनजी और गणेशमलजी तीनों भाई स्वरूपचन्द गणेशमल के नाम से मनोहरदास के कटले में कपड़े का व्यापार करते हैं। आप लोग उत्साही और मिलनसार युवक हैं। समरथमलजी प्रारम्भ से ही हजारीमल समरथमल के नाम से रेडीमेड क्लाय का व्यापार करते भा रहे हैं। आपके सुमेरमलजी नामक एक पुत्र है जो उत्साही हैं और व्यापार कार्य करते हैं। आपकी फर्म १५ नारमल लोहिया लेन में हैं। यहाँ कपड़े का तथा चलानी का काम होता है। भापके यहाँ देसी मिलों से कपड़ा आता है और थोक बिक्री किया जाता है।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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