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________________ पोसवाल जाति का इतिहास ५० वर्ष होगये हैं। इनके पुत्र का नाम जुहारमलजी था। आप दोनों ही पिता पुत्रों ने मिलकर इस फर्म की तरक्की की। जुहारमलजी का स्वर्गवास अपने पिताजी की मौजूदगी में ही हो गया था। आप के मानचन्दजी नामक एक पुत्र थे। आपने भी इस फर्म के कारबार में तरक्की की। आप सं० १९७४ में स्वर्गवासी हुए। मानचन्दजी के दो पुत्र हुए। जिनमें बड़े समीरमलजी दूगढ़ थे। मगर आप केवल १९ वर्ष की अवस्था में ही संवत् १९७५ में स्वर्गवासी हुए। इस समय इस फर्म के मालिक मानचन्दजी के छोटे पुत्र जसवन्तमलजी है। आप बड़े योग्य, विनयशील और शान्ति प्रकृति के सज्जन हैं। - इस फर्म की तरफ से तिरमिलगिरी के बालानी के मन्दिर में एक धर्मशाला बनवाई गई है। और भी परोपकार सम्बन्धी कार्यों में आपकी ओर से सहायता दी जाती है। - आपकी दुकान पर मिलिटरी बैंकिंग, मिलिटरी के साथ लेनदेन तथा कन्ट्राक्टिंग का काम होता है। सेठ बींजराजजी दूगड़ का परिवार, सरदारशहर * यह परिवार फतेपुर (सीकर-राज्य) से करीब १०० वर्ष पूर्व सरदारशहर में भाया। इस परिवार के पूर्व का इतिहास बढ़ा गौरवमय रहा है जिसका जिक्र हम अलग दूसरे इतिहास के साथ दे रहे हैं। फतेहपुर से सेठ बींजराजजी पहले पहल सरदारशहर आये । आप उस समय यहाँ के नामांकित व्यक्ति थे । यहाँ की पंच पंचायती में आपका बहुत बड़ा भाग था। जाति के लोगों से आपका बहुत प्रेम था। जब कभी जाति का कोई कठिन काम आ पड़ता और उसमें आपके विरोध से काम बिगड़ने का अंदेश होता तो आप उसी समय अपना व्यक्तिगत विरोध छोड़ देते थे। यहां की पंचायतो में आपके द्वारा कई नियम प्रचलित किये गये जो इस समय भी सुचारु रूप से चल रहे हैं। व्यापार में भी आपका बहुत बड़ा भाग था । आपने कलकत्ता में अपनी फर्म स्थापित की। तथा व्यापारिक चातुरी एवम् होशियारी से उसमें अच्छी सफलता प्राप्त की महाराजा डूंगरसिंहजी बीकानेर से आपका दोस्ताने का सम्बन्ध था। लिखने का मतलब यह है कि इस परिवार में आप बहुत प्रभावशाली एवम् प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए। आपका स्वर्गवास संवत् १९६३ में होगया। आपके सेठ भैरोंदानजी, सेठ तनसुखदासजी एवम् सेठ पूसराजजी नामक तीन पुत्र हुए। सेठ भैरोंदानजी का जन्म संवत् १९१६ का था। आप बड़े बुद्धिमान एवं चतुर पुरुष थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९७१ में हो गया । आपके केवल भा नीरामजी नामक एक पुत्र थे। आपका जन्म १९३७ में हुआ। आप भी अपने पिताजी की भांति व्यापार कुशल व्यक्ति थे।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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