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________________ मेहता बागरेचा और बलून्दा के ठाकुर रामसिंहजी चांगावत फौज लेकर गये । हम दोनों वीरों में बड़ी वीरता से उसका सामना किया । इस लड़ाई में बलून्दा के ठाकुर तो मारे गये और सोमसीजी विजयी होकर जोधपुर में आकर रहने लगे। मेहता भगवानदासजी-सोमसीजी के दूसरे भाई कीताजी के भगवानदासजी नामक एक पुत्र हुए। आप भी बड़े बहादुर ब्यक्ति थे। संवत् १७०६ कार्तिक मास में जैसलमेर के रावल मनोहरदासजी का स्वर्गवास हुआ तथा वहाँ की गद्दी के लिये भाटी रामचन्द्र और सबलसिंह के बीच में झगड़ा हुआ। तब बादशाह की आज्ञा से जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंहजी ने मेहता भगवानदासजी और सिंघवीप्रतापमलजी को फौज देकर सबलसिंहनी की मदद पर भेजा । कहना न होगा कि इस लड़ाई में मेहता भगवानदासजी विजयी हुए और सबलसिंहजी को राज्यासीन करके अपनी फौज को वापस जोधपुर ले आये। इससे जोधपुर नरेश महाराजा जसवंतसिंहजी बड़े खुश हुए । मेहता भगवानदासजी के मेरूदासजी और जीवनदास बी नामक-दो पुत्र हुए। मेहता जीवनदासजी-संवत् १७४५ लगभग राव भानंदसिंहजी और रामसिंहजी जालौर में उपद्रव करने लगे। उनको दबाने के लिए महाराजा अजीतसिंहजी ने मारी अनोपसिंहजी तथा मेहता जीवनदासजी की अधीनता में फौज भेजी । इस फौज का आना सुनकर दोनों बागी सरदार जालौर मेडकर भाग गये। मेहता जीवनदासजी के गिरधरदासजी, सुन्दरदासजी, तथा नरसिंहदासजी नामक तीन मेहता लालचन्दजी-मेहता सुन्दरदासजी के पुत्र लालचन्दजीने महाराज विजयसिंहजी के समय में राज्य की बहुत सेवाएँ की हैं। आप दरबार की तरफ से दिल्ली और आगरा भी भेजे गये थे। जोधपुर नरेश ने उन्हें बीकानेर नरेश महाराज गजसिंहजी के पास भी रेखा था। वहाँ रहकर उन्होंने बीकानेर में बहुत सी सेवाएँ बजाई जिसके उपलक्ष्य में उनको बहुत से रुक्के मिले । जब निजबकुलीखो ५००० फौज लेकर जोधपुर पर चढ़ आया उस समय महाराजा विजयसिंहजी ने सहायता के लिये हरदिया नंदरामजी और मेहता लालचन्दजी को बादशाह के पास भेजा। बादशाह ने इन्हें ५००० फौज देकर रवाना किया इस फौज की सहायता से उन्होंने दुश्मन को भगा दिया। इससे प्रसन्न होकर महाराज ने इन्हें बड़ी जागीरी बक्षी। इसके पश्चात् जोधपुर नरेश ने प्रसन्न होकर इनको क्रमशः आकेलड़ी, पाचोदी, मूडधा, बेचरोली, कुण्डी, अकड़ाया, नेणिया तथा झालामण्ड नामक गाँव समय २ पर जागीर में इनायत किये। मेहता बांकीदासजी-मेहता लालचन्दजी के बांकीदासजी मामक एक पुत्र हुए । आप भी बडे कारगुजार पुरुष थे। महाराजा जोधपुर के साथ मरहठों की सुलह कराने में इन्होंने बड़ी मदद दी थी।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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