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________________ मोलवावा नाति का इतिहास विक्वाया। भापने मुनिरामय विजयजी का कोसेलाव में ४ हजार रुपया व्यय करके चतुर्मास कराया। आप दोनों बधु वरकाणा विद्यालय कमेटी के मेम्बर है। आपके यहाँ कोयम्बटूर में फतेचन्द मेघराज तथा मेघराज केसरीमल के नाम से जरी कपडा तयार करवा कर दिसावर भेजने का व्यापार होता है। रिडिगल में भी भापकी एक शाखा है। मापने इन्दौर में केसरीमल द्वारकादास के नाम से प्रांच खोली है। इस पर कोयम्बटूरी जरी माल का व्यापार होता है। सेठ नेमीचंदजी कुंभाकोनम में धनरूप हीराजी नामक फर्म पर काम करते हैं। इनके पुत्र दीपचंदजी तथा भनराजजी है। मेहता कागरेचा बागरेचा गौत्र की उत्पत्ति बागरेचा गौत्र की उत्पत्ति सोनगरा चौहान राजपूतों से मानी जाती है। इस गौत्र की उत्पत्ति कम हुई और किस प्रकार हुई, यह निश्चयात्मक नहीं कहा जा सकता। ऐसा कहा जाता है कि जालौर के राजा सोमदेवजी के बड़े पुत्र बागराजजी को जैनाचार्य श्री सिद्धसूरिजी ने जैनी बनाया। इन्होंने जालौर के पास बागरा नामक गाँव बसाया। इन्हीं बागराजजी के नाम से वागरेचा गौत्र की उत्पत्ति हुई। इसी खानदान में आगे चलकर जगरूपजी हुए। इन जगरूपजी की कई पीढ़ियों के बाद अमीपालजी हुए । अमीपाजजी-संवत् १४२ के लगभग आप सिरोही गये तथा वहाँ के मुख्य मुसाहब और दीवान हुए। संवत् १६५६ रेखामग जोधपुर के महाराज सूरसिंहजी ने दीवान अमीपालजी के कार्यों से प्रसन्न होकर सिरोही राव से इन्हें मांगलिया और उन्हें जोधपुर ले आये । आपने संवत् ॥६५८ में जहाँगीर से अजमेर में महाराज सूरसिंहजी को जालौर का परगना इनायत करवाया। महाराजा ने जालौर पर कब्जा करके समीपालजी को वहाँ रक्खा। जब महाराज दिल्ली गये तब अमीपालजी को भी साथ ले गये। बादशाह अमीपालजी के काम से खुश हुए और उन्हें दिल्ली के खजाने का काम सौंपा। इसके पश्चात् समीपालजी दिल्ली रहे और वहीं पर इनका शरीरान्त हुआ। इनकी धर्मपत्नी इनके साथ सती हुई। इनके स्मारक में दिल्ली में छत्री बनी हुई है। भापके कीताजी और सोमसिंहजी नामक दो पुत्र हुए। . मेहता सोमासिंहजी-सं० ११०९ के करीब मेड़ते के सूबा आमूमहम्मद ने चदाई करके निम्बोल के एक सम्पत्तिशाली ननवाणा बोहरा को पकड़ लिया। उसका सामना करने के लिये मेहता सोमसिंहजी
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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