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________________ सुराकी के निमित्त ६० साल पहिले माहेरी (सी० पी०) आये, और वहाँ कपड़ा किराने का व्यापार चालू किया । संवत् १९६८ में आपने पॉटर कवड़ा में दुकान की। सेठ चन्दनमलजी का स्वर्गवास सम्वत् १९०८ में हुआ | आपके बड़े पुत्र बहादुरमलजी का सं० १९८९ में स्वर्गवास होगया, और शेष मिश्रीलालजी, मोहनलालजी और मोतीलालजी नामक तीन पुत्र विद्यमान है । संवत् १९८२ में इन सब भाइयों का कारवार अलग २ हुआ । सेठ बहादुरमलजी के पुत्र सुगनमलजी तथा मोतीलालजी माहेरी में व्यापार करते हैं। मोतीलालजी के पुत्र कॅवरीलालजी तथा कानमलजी हैं। सेठ मिश्रीलालजी सुराणा का जन्म सम्वत् १९४४ में हुआ । आप पांदर कवड़ा के व्यापारिक समाज में अच्छी प्रतिष्ठा रखते हैं। आपके यहाँ चन्दनमल मिश्रीलाल के नाम से जमीदारी, साहुकारी, सराफी तथा कपड़े का व्यापार होता है। आपने पाथरड़ी गुरुकुल, भागरा विद्यालय आदि संस्थाओं को सहायताएँ दी हैं। आपके पुत्र रतनलालजी उत्साही युवक हैं तथा फर्म के व्यापार को तत्परता से संभालते है। इनके पुत्र पत्राकाल हैं। सुराणा मोहनलालजी का कारवार चन्दनमल मोहनलाल के नाम से होता है। इसी तरह उतमचन्दजी के पौत्र हीरालालजी, उत्तमचन्द सूरजमल के नाम से माहेरी में व्यापार करते हैं। सेठ दीपचन्द जीतरमल सुराणा, भुसावल यह कुटुम्ब थांवला (अजमेर से १० मोल की दूरी पर) का निवासी है। वहाँ से सेठ जीतरमलजी सुराणा लगभग ५०-६० साल पहिले भुसावल आये, तथा लेनदेन का व्यापार जीतरमल मोतीराम के नाम से आरम्भ किया । इस प्रकार व्यापार की उन्नति कर आप संवत् १९७२ में स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र भैरोंलालजी और दीपचन्दजी विद्यमान हैं । आप दोनों सज्जन व्यक्ति हैं। सुराणा भैरोंलालजी का जन्म संवत १९५७ में हुआ। आपकी दुकान यहाँ के जोसवाल समाज में अच्छी प्रतिष्ठित मानी जाती है। आपके छोटे भाई दीपचन्दजी २६ साल के हैं। आनंदराजजी सुराणा, जोधपुर आनंदराजजी सुराणा न केवल ओसवाल समाज ही में वरन् राजस्थान के देश सेवकों में अपना ऊँचा स्थान रखते हैं। आपने राजस्थान में जागृति करने के लिये बड़े २ कष्ट उठाये, तथा कई साल तक आपने जेल की कठोर यातनाएं भोगीं । स्थानकवासी समाजके आप प्रधान नेताओं में से हैं। इस संप्रदाय की कोई उल्लेखनीय संस्था ऐसी नहीं होगी, जिससे आपका सम्बन्ध न हो । १९३
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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