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________________ डड्ढा इन्हीं सारंगदासजी के रघुनाथदासजी और नेतसीजी नामक दो पुत्र हुए। रघुनाथदासजी के परिवार वालों ने फलौदी को ही अपना निवासस्थान कायम रक्खा । नेतसीजी के परिवार वाले कुछ बीकानेर, कुछ जयपुर, कुछ जोधपुर और कुछ अजमेर चले गये । तथा कुछ फलौदी ही में रहकर व्यापार करने लगे । कहना न होगा कि डठ्ठा परिवार ने जहाँ २ अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित किये, उन सब स्थानों पर उनकी पोजिशन बहुत ऊँचे दरजे की रही । इन लोगों ने अपनी व्यापारिक प्रतिभा से द्रव्य और राज्य सम्मान दोनों चीजों को प्राप्त किया। इन लोगों के पास तत्कालीन समय के जोधपुर, जैसलमेर तथा बीकानेर के महाराजाओं के दिये हुए ऐसे रुक्के मिलते हैं, जिनसे मालूम होता है कि उस समय के राजकीय वातावरण में इनकी बहुत अच्छी व्यापारिक प्रतिष्ठा जमी हुई थी । जोधपुर और जैसलमेर राज्य की ओर से आप लोगों को चौथाई महसूल की माफी दी गई थी । अस्तु, अब हम नीचे रघुनाथसिंहजी और नेतसीजी के परिवार का वर्णन करते हैं । डढा रघुनाथदासजी का खानदान ( सेठ सुगनमलजी लालचन्दजी डड्डा, फलौदी ) हा रघुनाथदासजी के तीन पुत्र हुए जिनमें से तीसरे पुत्र अनोपचन्दजी के वंश में आगे चलकर क्रमशः जीवराजजी, पीरचन्दजी, कपूरचन्दजी, किशनचन्दजी और माणिकचन्दजी हुए। इनमें माणिकचन्दजी के शाह सुगनमलजी, मगनचन्दजी और अगरचन्दजी नामक तीन पुत्र हुए। संवत् १६९५ में इस खानदान वाले जैसलमेर से चलकर फलौदी (मारवाड़) में जा बसे और तभी से इस परिवार वाले फलौदी में ही निवास करते हैं । शाह सुगनमलजी डढ्ढा - आपका जन्म संवत् १९२२ में हुआ । संवत् १९५७ में आपने व्यापार के निमित्त मद्रास प्रान्त की ओर प्रस्थान किया तथा इसी वर्ष मद्रास में बैकिङ्ग कारवार की फर्म स्थापित की। आपके लक्ष्मीचन्दजी, सौभागमलजी तथा लालचन्दजी नामक तीन पुत्र हुए। लक्ष्मीचन्दजी डढ्ढा-डहा लक्ष्मीचन्दजी का जन्म संवत् १९३९ में हुआ था । आप बड़े संवत् १९७० में अपने फर्म के व्यवसाय को व्यापार कुशल, अनुभवी, योग्य तथा समझदार सज्जन थे । सर्व प्रथम आपने भाइयों के साथ मद्रास में 'केमिस्ट एण्ड ड्रगिस्ट' की एक फर्म स्थापित की । इस आपने अपनी व्यापार चातुरी तथा बुद्धिमानी से बहुत चमकाया। इस फर्म पर आपकी कार्य कुशलता तथा योग्य संचालन से दवाइयों का काम बड़ी तीव्र गति से बढ़ने लगा और कुछ ही वर्षों बाद यह फर्म इस व्यवसाय को बहुत बड़े स्केल पर करने लगी । इस समय यह फर्म सारे मद्रास में सबसे बड़ी तथा मशहूर ७४ २६५
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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