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________________ ओसवाल जाति का इतिहास केमिस्ट एण्ड ड्रगिस्ट है और सारे भारत के दवाई के व्यवसाइयों में दूसरा स्थान रखती है। इस फर्म के द्वारा न केवल मद्रास प्रान्त में ही बरन् दूर २ के प्रदेशों में तथा मैसूर, ट्रावनकोर, कोचीन, पदुकोटा आदि देशी रियासतों में भी बहुत बड़े स्केल पर औषधियाँ सप्लाय की जाती हैं। इस प्रकार व्यापार में अत्यन्त सफलता प्राप्त कर आपका संवत् १९८३ की श्रावण सुदी ४ को स्वर्गवास हुआ। उड्डा सौभागमलजी का सम्वत् १९४५ में जन्म हुआ था। आपने अपने ज्येष्ठ भ्राता लक्ष्मीचन्दजी के साथ व्यापार में सहयोग दिया। आप संवत् १९८६ में स्वर्गवासी हुए। श्री लालचन्दजी डढ्ढा-आपका जन्म सम्वत् १९५५ के चैत वदी । को हुआ। आप बड़े सरल स्वभाव और उदार हृदय के सजन है तथा इस समय फर्म के तमाम कारवार को बड़ी बुद्धिमानी के साथ संचालित कर रहे हैं। आपके द्वारा हजारों रुपयों की सहायता चन्दे के रूप में कई अच्छी २ संस्थाओं और जैन मन्दिरों आदि को दी गई हैं। आप बड़े कर्मवीर और उद्योगी पुरुष हैं आपके पुत्र मिलापचन्दजी हैं। यह परिवार फलौदी व जोधपुर स्टेट के प्रधान २ धनिक कुटुम्बों में माना जाता है । फलौदी में इसकी बहुतसी स्थाई सम्पत्ति है। . शाह सुगनमलजी डहाके छोटे भ्राता शाह अगरचन्दजी के तीन पुत्र हैं जिनके नाम क्रमशः श्री अमरचन्दजी, गोपीचन्दजी और कल्याणचन्दजी हैं। आप अपना स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं। ... रघुनाथसिंहजी के छोटे भाई नेतसीजी के छः पुत्र हुए जिनके नाम खेतसीजी, वर्द्धमानजी, अभयराजजी, हेमराजजी, खींवराजजी और बच्छराजजी था। इनमें खेतसीजी के रतनसीजी, तिलोकसीजी, विमलसीजी और करमसीजी नामक चार पुत्र हुए। *सेठ तिलोकसीजी बड़े बहादुर और प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति थे। रियासत से अनबन हो जाने के कारण आप संवत् १७२४ में फलौदी से बीकानेर चले गये। बीकानेर के तत्कालीन महाराजा मे आपका बम सत्कार किया । बीकानेर में आपने अपने व्यापार को खूब चमकाया, और पातायात के साधनों से रहित उस युग में भी सुदूरवर्ती बनारस शहर में तिलोकसी अमरसी नथमल के नाम से अपनी फर्म स्थापित की। आपके चार पुत्र हुए. जिनके नाम क्रमसे पदमसीजी, धरमसीजी, अमरसीजी और टीकमसीजी था। सेठ पंदमसीजी नेनसीजी का खानदान ( सेठ सौभागमल जी डड्डा अजमेर,) सेठ तिलोकसीजी के पश्चात् सेठ पदमसीजी ने स्वतन्त्ररूप से अपने कारवार का संचालन किया। आपने इन्दौर में अपनी शाखा स्थापित की। इन्दौर की राजमाता अहिल्याबाई की आप पर
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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