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________________ सखतमलजी और मोहनसिंहजी हैं। सेठ प्रसन्नमलजी के पुत्र प्रकाशमलजी, दिलखुशहालजी, गंगामलजो और प्रेमसिंहजी हैं। प्रकाशमलजी ने बी० काम की परीक्षा पास की है। और गंगामलजी सुपारसमलजी के नाम पर दत्तक गये हैं। सेठ भंवरमलजी के पुत्र मनोहरमलजी व भीमसिंहजी तथा कुंदनमलजी के पुत्र उगममलजी व हणुतमलजी हैं। ' नागोर के ओसवाल समाज में यह परिवार अच्छी इज्जत रखता है। जब कभी जोधपुर दरबार नागोर आते हैं, सो अणवीधे मोतियों से तिलक करने का अधिकार लोदा (जमलोत ) परिवार को ही प्राप्त है। सेठ मूलचन्द मिलापचन्द लोढा, नागोर ___ यह खानदान नागोर में ही निवास करता है। इस खानदान के पूर्वज शाह टोडरमलजी लोढ़ा की सातवीं पीढ़ी में सेठ मेहताबचन्दजी लोढ़ा हुए। इनके मूलचन्दजी और मिलापचन्दजी नामक वो पुत्र हुए। सेठ मूबचन्दजी लोढ़ा का जन्म संवत् १९२१ में हुमा । आप म्यापार के निमित्त संवत् १९४५ में बम्बई गये, और वहाँ के व्यापारिक समाज में आपने अच्छी इज्जत पाई। संवत् १९६५ में मागोर में भापका स्वर्गवास हुभा। सेठ मूलचन्दजी के बाद फर्म का ब्यापार उनके छोटे भाई मिलापचन्दजी ने सझाला, आपका जन्म संवत् १९२५ में हुआ। आपने इस फर्म के व्यापार को बहुत उन्नति पर पहुँचाया और इसकी शाखाएं बम्बई के अलावा कलकत्ता, अहमदाबाद तथा सोलापुर में खोली। नागोर के ओसवाल समाज में आप अच्छी प्रतिष्ठा रखते हैं। तथा बम्बई वालों के नाम से बोले जाते हैं। . सेठ मूलचन्दजी के पुत्र केवलचन्दजी होशियार व्यक्ति थे। संवत् १९८७ में इनका शरीरान्त हुभा । इनके बड़े पुत्र माधोसिंहजी स्वर्गवासी हो गये हैं और प्रसनचन्दजी सुमेरचन्दजी तथा हुकुमचन्दजी नामक ३ पुत्र विद्यमान हैं। प्रसन्नचन्दजी व्यापार में भाग लेते हैं और छोटे भ्राता कालेज में पढ़ते हैं। सेठ मिलापचन्दजी के पुत्र कानचन्दजी नेमीचन्दजी और मंगलचन्दजी व्यापारिक कारवार सम्हालते हैं। कानचन्दजी के पुत्र सूरजचन्दजी और सरूपचन्दजी हैं। इसी तरह नेमीचन्दजी के पुत्र किशोरचन्द, मंगलचन्दजी के पुत्र भँवरचन्द और प्रसनचन्दजी के मनोहरचन्द और अमरचन्द है। नगर सेठ कालुरामजी लोढ़ा का खानदान, शिवगंज इस परिवार के पूर्वज (टोडरमलोत ) लोदा रायचन्दजी के पौत्र लोदा कचरदासजी सं० १८५० में सोजत से पाली आये। यहाँ अझीम के धन्धे में इन्होंने अच्छी तरको पाई। इनके चौथमलजी और कालूरामबी नामक २ पुत्र हुए।
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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