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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास . नगर सेठ कालूरामजी लोड़ा-आप पाली की पंचपंचायतो में प्रधान व्यक्ति थे। भापको जोधपुर महाराजा मानसिंहजी ने और तखतसिंहजी ने सिरोपाव इनायत कर सम्मानित किया था। संवत् १९११ में पाली पर टैक्स बढ़ाये जाने के कारण आप अपने साथ कई लखपतियों को लेकर सिरोही स्टेट में चले आये, और वहाँ के महाराव शिवसिंहजी के नाम से एरनपुरा के पास शिवगंज नामक बस्ती भावाद की। इसके उपलक्ष में सिरोही दरवार ने आपको "नगर सेठ" की पदवी प्रदान की। आपकी दुकानें उदयपुर, गुजरात और बम्बई में थीं। संवत् १९९६ में आपने ऋषभदेवजी का संघ निकाला । और इसी साल भादवा बदी • को भोजन में किसी दुश्मन द्वारा जार दिये जाने के कारण आप उदयपुर में स्वर्गवासी हुए। सन् १९१४ के गदर में आपने अंग्रेजों की बहुत मदद की थी। . सेठ जुहारमलजी लोढ़ा-आप सेठ कालूरामजी लोदा के पुत्र थे। उदयपुर दरबार ने आपको अपने राज्य में आधे महसूल माफ रहने का परवाना दिया था। आपको जोधपुर दरवार के हाकिम मनाकर शिवगंज से १ वार पाली ले गये । संवत् १९२४ में आप स्वर्गवासी हुए। आपके माम पर सेठ चौथमलजी के प्रपौत्र बरदीचन्दजी दत्तक आये । सेठ चौथमलजी लोढ़ा-आपकी दुकान संवत् १९९७ में एरमपुरा कम्टून्मेंट की ट्रेजरर थे, पाली से पुनः शिवगंज आने पर सिरोही दरबार ने आपको २ कुए तथा कस्टम की आय से ५) सैकड़ा देने का हुक्म दिया। आपको दरवार और गवर्नमेंट में अच्छी इजत थी। संवत् १९६५ में आप स्वर्गवासी हुए। वर्तमान में आपके पुत्र सेठ तखतराजजी विद्यमान हैं। से तखतराजजी का जन्म संवत् १९५० में हुभा। आपको शिवगंज की कस्टम की आय से ५) सैकड़ा मिलता है। यहाँ की जनता में आप लोकप्रिय तथा प्रतिष्ठित सज्जन है। आप स्थानीय गौशाला और बईमान विद्यपीठ के प्रेसिडेण्ट है। आपने परिश्रम करके शिवगंज में पैदा हुई पोसवाल समाज की तह को साल पहिले मिटाया है। आपके पुत्र प्रकाशराजजी और बलवन्तसिंहजी हैं। इसी तरह इस परिवार में सेठ कालूरामजी के बड़े माता चौथमलजी के कुटुम्ब में सेठ घेवरचंदजी बुद्धीलालजी और बलवन्तसिंहजी हैं। सेठ नवलमल हीराचन्द लोढ़ा, बगड़ी . इस परिवार का तीन चार सौ वर्ष पूर्व नागौर से बगढ़ी में आगमन हुआ। इस परिवार के पूर्वज सेठ दौलतरामजी और उनके पुत्र नवलमलजी ४०-५० साल पहिले ब्यापार के लिए बगढ़ी से कामठी गये और वहाँ आपने दुकान की। कामठी से आपने रायपुर में दुकान की । सेठ मळमजी संवत् १९५२
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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