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________________ मालवाल जाति का इतिहास भी नागौर में विद्यमान है। आपके पूर्वज सारंगशाहजी को देहली बादशाह ने शाह की पदवी इनायत की थी। सं० १०५६ में महाराजा अजीतसिंहजी ने आपको आधे महसूल की माफी का परवाना देकर सम्मानित किया। आपके सुजानसिंहजी, सबलसिंहजी, भावसिंहजी तथा भगवतसिंहजी नामक चार पुत्र हुए। मावसिंहजी लोढ़ा-आप बड़े प्रभावशाली साहुकार थे। एक समय आपके नेतृत्व में नागौर के साहूकारोंने राज्य से अप्रश्न होकर नागौर छोड़ दी तब संवत् १७७४ में जोधपुर नरेश अजितसिंहजी ने आपके नाम पर दिलासा का पत्र भेज कर सब को पुनः वापस बुलाया था। नागौर वापस आने पर आपको जोधपुर दरबार में बैठने का कुरुब इनायत किया था। भापका बीकानेर स्टेट में भी अच्छा सम्मान था। आपके हठीमलजी, अभयमलजी तथा हिम्मतमलजी नामक तीन पुत्र हुए। आप सब भाइयों को जोधपुर दरबार की ओर से कई रुक्के परवाने, दुशाले तथा सिरोपाव बक्षे गये थे। सेठ हठीसिंहजी के पुत्र हिन्दूमलजी को सं० १८३१ में जोधपुर दरबार की ओर से सिरोपाव इनायत किया गया। आपके परथीमलजी, गढ़मलजी, भारमलजी तथा फौजमलजी नामक चार पुत्र हुए। इनमें गढ़मलजी के गम्भीरमलजी, सिरेमलजी तथा मगनमलजी नामक तीन पुत्र हुए। आप लोगों ने संवत् १९६४ में जोधपुर के घेरे के समय महाराजा मानसिंहजी को अर्थिक मदद दी थी, जिससे प्रसन्न होकर मानसिंहजी ने आपको एक रुक्का इनायत किया था। लोदा मगनमलजी के सौभागमरूजी, छगनमलजी, मनरूपमलजी, अनोपचन्दजी तथा बहादुर मलजी नामक पाँच पुत्र हुए। आप लोगों को भी जोधपुर स्टेट की ओर से दुशाले, सिरोपाव व खास रूक्के इनायत किये गये थे। इनमें से सेठ सौभागमलजी के जावन्तमलजी, मनरूपमलजी के मनोहरमलजी, कस्तूरचन्दजी तथा जीतमलजी और बहादुरमथली के जतरूपमळनी नामक पुत्र हुए। इनमें से कस्तूरमलजी अनोपचन्दजी के नाम पर, यरूपमलजी के ज्येष्ठ पुत्र सुपारसमलजी जावंतमलजी के नाम पर और जीतमलजी के पुत्र घासीलालजी ममोहरमलजी के यहाँ पर दत्तक गये। सेठ फूलमलजी जगरूपमलजी तथा घासीमलजी को जोधपुर स्टेट की ओर से दुशाले इनायत हुए। सेठ घासीमलजी ने १९५६ के अकाल में गरीबों तथा पर्दानशीन औरतों की बड़ी इम्दाद की थी। आपके इस समय लक्ष्मीमलजी, प्रसन्चमाजी तथा भवरलालजी नामक पुत्र विषयान हैं। इनमें से लक्ष्मीमलजी, कस्तूरमलजी के नाम पर तथा प्रसन्नमलजी,जीतमलजी के नाम पर दत्तक गये हैं। वर्तमान में इस परिवार के मुल्य व्यक्ति सेठ लक्ष्मीमजी, प्रसजमलजी, भंवरमलजी, कुंदनमलजी (जसरूपमलजी के पुत्र) और गंगामलजी (सुपारसमलनी के पुत्र ) विद्यमान हैं। इस समय सेठ लक्ष्मीमलजी के पुत्र चंचलमलजी, विनमलजी गुलाबमलजी, पलभसिंहजी,
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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