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________________ प्रोसवाल जाति का इतिहास बाल्यावस्था में ही स्वर्गवास हो गया। दूसरे पुत्र सेउ सुजानमलजी ने सन् १८५७ के विद्रोह के समय अंग्रेज़ सरकार को बहुत सहायता दी। इन्होंने रियासत शाहपुरा में रायबहादुर सेठ मूलचंदजी सोनी के साझे में दूकान खोली, और वहाँ के राज्य से लेन-देन किया। इनके समय साम्भर की हुकूमत इनके घराने में आई और वहाँ का कार्य आप अपने प्रतिनिधियों द्वारा करते रहे। इनके स्वर्गवास के पश्चात् इस घराने की बागडोर तीसरे पुत्र रायबहादुर सेठ समीरमलजी के हाथ में आई। अजमेर नगर की म्युनिसिपल कमेटी के आप बहुत वर्षों तक मेम्बर रहे और बहुत समय तक आनरेरी मजिस्ट्रेट भी रहे थे । भाप म्यु० कमेटी के ३१ बर्ष तक वाइस चेयरमैन बने रहे। इस पद पर और मजिस्ट्रेटी परये मृत्यु दिवस तक अरूद रहे थे । इनकी वाइस चेयरमैनी में अजमेर में सुप्रसिद्ध जल की सुविधाडलिये “फाईसागर" बना, जिससे आज सारे नगर और रेलवे को पानी पहुंचाया जाता है। इनके समय में इलकत्ता, बम्बई, कोटा, अलवर, टोंक, पड़ावा, सिरोंज, छबड़ा, और निम्बाहेड़ा में नयी दूकानें खुली। ये अलवर, कोटा और जोधपुर की रेजीडेन्सी के कोषाध्यक्ष नियत हुऐ। देवली और एरनपुरा की पल्टनों के भी कोषाध्यक्ष का कार्य इनको मिला। रायबहादुर सेठ समीरमलजी को सार्वजनिक कार्यों में प्रसन्नता होती थी। संवत् १९४८ के अकाल में अजमेर में आपने एक धान की दुकान खोली। इस दुकान से गरीब मनुष्यों को सस्ते भाव से उदर पूर्ति के हित अनाज मिलता था। इस दुकान का घाटा सब आपने दान किया। इनके समय में यह घराना भारतवर्ष भर में विख्यात हो गया तथा देशी रजवाड़ों से इन्होंने घनिष्ठ मित्रता स्थापित की । उदयपुर, जयपुर, जोधपुर से इनको सोना और ताजिम थी। बृटिश गवर्नमेंट में भी इनका मान बहुत बढ़ा। इनमें यह योग्यता थी कि जिन अफसरों से ये एकवार मिल लेते थे वे सदा इनको आदर की दृष्टि से देखते थे। इनके कार्यों से प्रसन्न होकर सरकार ने इनको सन् १८७७ में रायसाहब की पदवी और तत्पश्चात् सन् १८९० में रायबहादुर की पदवी दी। इनकी मृत्यु के पश्चात् सेठ हमीरसिंहजी के चौथे पुत्र दीवान बहादुर सेठ उम्मेदमलजी ने इस घराने के कार्य को संचालन किया। वे व्यापार में बड़े कार्य दक्ष थे। इनके Entreprise से इस घराने की सम्पत्ति बहुत बढ़ी। सरकार ने इनको सन् १९०१ में रायबहादुर की और सन् १९१५ में दीवान बहादुर की पदवी दी। ये भी मृत्यु दिवस तक अजमेर नगर के प्रसिद्ध आनरेरी मजिस्ट्रेट रहे थे। रियासतों से हनको भी सोना और ताजिम थी। इन्होंने उद्यमहीनों को उद्यम से लगाने के हेतु व्यावर में एडवर्ड मिल खोली, जिसमें बहुत अच्छा कपड़ा बनता है और जो इस समय भारतवर्ष की विख्यात मिलों में एक है। इन्होंने बी० बी० सी० आई० रेलवे के मीटर गेज भाग के धन कोर्षों का तथा कुल वेतन बाँटने का ठेका लिया और इसका काम भी उत्तमता से चलाया । सेठ उम्मेदमलजी के कोई संतान नहीं हुई । इनके नाम पर सेठ समीरमलजी के दूसरे पुत्र अभयमलजी गोद आये । २४०
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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