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________________ लावा १० साल तक आप पाली, जोधपुर और जालोर के हाकिम रहे और इधर सन् १९१७ से जनानी ज्योढ़ी के सुपरिण्टेण्डेण्ट के पद पर कार्य कर रहे हैं। आप बड़े मिलनसार, सरल चित्त और निराभिमानी सजन हैं। जोधपुर की ओसवाल समाज में आपकी बड़ी प्रतिष्ठा है। राज्य के सरदारों में भी आपका उस सम्मान है। आपको दरबार से दोवड़ी ताजीम और पैरों में सोना पहिनने का अधिकार प्राप्त है। भाप जोधपुर भोस. वाल श्रीसंघ के प्रेसिडेण्ट हैं। आपके सवाईसिंहजी, वल्लमसिंहजी तथा किशोरसिंहजी नामक तीन पुत्र हैं। कुँवर सवाईसिंहजी इस समय सीवाने के हाकिम है और आपको पैरों में सोना पहिनने का अधिकार प्राप्त है। आपके बड़े पुत्र कुँवर वल्लभसिंहजी ने हाल ही में बी० ए० की परीक्षा पास की है। कुँवर सवाईसिंहजी के पुत्र गुलाबसिंहजी इन्दौर में एल० एल० बी० के द्वितीय वर्ष में पढ़ रहे हैं। इनसे छोटे भाई जसवंतसिंहजी मेट्रिक में शिक्षा पा रहे हैं। राब अमरसिंहजी-आप रावरजा बहादुर माधोसिंहजी के छोटे भाता है। जोधपुर दरबार से भापको हाथी, सिरोपाव, सोना और ताजीम प्राप्त हैं। इसी प्रकार जयपुर दरवार ने भी भापको हाथी, सिरोपाव देकर सम्मानित किया है। आप रीवा महारानी (जोधपुर की महाराज कुमारी) के कामदार हैं। रीवा स्टेट ने भी आपको सोना पहिनने का अधिकार बख्शा है । मापके पुत्र सूरतसिंहजी पढ़ते हैं। इस परिवार को जोधपुर दरबार की ओर से गेगोली और परासली नामक दो गाँव जागीर में प्राप्त हुए थे। वे इस समय इस कुटुम्ब के अधिकार में हैं। सेठ कमलनयन हमारसिंह लोढ़ा का खानदान अजमेर भारतवर्ष की भोसवाल जाति में यह बहुत बड़ा घराना है। इस घराने का सरकार, देशी राज्यों तथा प्रजा में बहुत सम्मान है। इस घराने के पूर्वज सेठ भवानीसिंहजी अलवर राज्य में रहते थे । इनके पांच पुत्रों में से सेठ कमलनयनजी कुछ समय किशनगद राज्य में रहकर संवत् १८६० के पूर्व अजमेर में भाये और यहाँ पर "कमलनयन हमीरसिंह" के नाम से दुकोन खोली। आपने अपनी कार्य-कुशलता तथा सत्य-प्रियता से धन्धे को भली भांति बदाया। आप ने जयपुर और किशनगढ़ में “कमलनयन हमीरसिंह" के नाम से और जोधपुर में "दौलतराम सूरतराम" के नाम से दूकानें खोली। आरके पुत्र सेठ हमीरसिंहजी हुए । आपने फर्रुखाबाद, टोंक व सीतामऊ में दूकानें जारी की और जयपुर, जोधपुर के महाराजाओं से लेन-देन प्रारम्भ किया तथा इस घराने की प्रतिष्ठा बढ़ायी। इनके चार पुत्र हुए-सेठ करणमलजी, सेठ सुजानमलजी, रायबहादुर सेठ समीरमलजी और दीवानबहादुर सेठ उम्मेदमलजी । प्रथम पुत्र सेठ करणमलजी का २४७
SR No.032675
Book TitleOswal Jati Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOswal History Publishing House
PublisherOswal History Publishing House
Publication Year1934
Total Pages1408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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